खिजरखाँ ने अपने साथ पाँच हजार सवारो की सेना लेकर सिंधु नदी को पार किया और उसने दूसरी बार खडाल राज्य पर आक्रमण किया। इसी खिजरखॉ ने रावल शालिवाहन को पहले आक्रमण मे पराजित किया था। उसके आक्रमण का समाचार सुनकर केलन सात हजार यदुवंशियों की सेना लेकर रवाना हुआ और खिजरखों के साथ उसने भयानक युद्ध किया। संग्राम में अपने पाँच सौ सैनिकों के साथ बलोच खिजरखॉ मारा गया और वृद्धावस्था में केलन को अपने शत्रु पर विजय प्राप्त हुई। जैसलमेर के सिंहासन पर बैठकर उसने उन्नीस वर्ष तक राज्य किया। उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई। रावल केलन की मृत्यु के बाद उसके बड़े लड़के चाचकदेव को- सम्वत् 1275 सन् 1216 ईसवी में राज्य सिंहासन पर बिठाया गया। इसके थोडे ही दिनों बाद चाचक देव ने चन्ना राजपूतों के साथ युद्ध किया और शत्रु के दो हजार राजपूतों का संहार करके उनकी चौदह सौ गायें छीन ली। चन्ना राजपूत पराजित हो जाने के बाद अपने राज्य को छोड़कर जोहिया राज्य में जाकर रहने लगे। रावल चाचकदेव ने चन्ना राजपूतों को परास्त करने के बाद सोढ़ा के राजा राणा अमरसी के राज्य पर आक्रमण किया। राजा अमरसी को इस आक्रमण से बहुत आश्चर्य हुआ और चाचक देव का सामना करने के लिये अपने चार हजार सवारों की सेना को लेकर वह रवाना हुआ। इस युद्ध में चाचक देव से पराजित होकर प्रमार राजपूत अपनी राजधानी अमरकोट भाग गये और उनके राजा अमरसी ने चाचकदेव के साथ अपनी लड़की का विवाह कर दिया। इन्हीं दिनों में राठौर राजपूतों ने मरुभूमि में आकर खेड नाम का एक नया राज्य बसाया था। वहाँ पर राठौरों ने अनेक प्रकार के अत्याचार आरम्भ किये, इसलिये रावल चाचक ने उन राठौरों को दमन करने का विचार किया। जसोल और बालोतरा नामक दो राज्यों पर राठौरों ने अधिकार कर लिया। रावल चाचक अपनी और सोढ़ावंशी लोगों की सेना लेकर राठौरों के विरुद्ध रवाना हुआ और उसने राठौरों से युद्ध आरम्भ कर दिया। इस युद्ध में राठौरों ने संधि की और चाचक के साथ राठौर राजकुमारी का विवाह कर दिया। बत्तीस वर्ष तक राज्य करने के बाद रावल चाचक की मृत्यु हो गयी। उसका इकलौता वेटा तेजराव उसके सामने ही बयालीस वर्ष की आयु में चेचक रोग से पीड़ित होकर मर गया। तेजराव के जैतसी और कर्णसी नाम के दो बालक थे। कर्णसी छोटा था। रावल चाचक इस छोटे बालक के साथ अधिक स्नेह करता था। मरने के समय उसने मन्त्रियों, सामन्तों और परिवार के लोगों को बुला कर कहा- "मेरे मरने के बाद राजकुमार कर्णसी को राज सिंहासन पर बिठाना। मेरी इस बात मे किसी प्रकार का अन्तर न पड़े।" रावल चाचक के निर्णय के अनुसार राज्य के सामन्तों ने छोटे राजकुमार कर्णसी को जैसलमेर के सिंहासन पर बिठाया। इस सिंहासन का वास्तव में अधिकारी बड़ा लड़का जैतसी था। अपने अधिकारों की अवहेलना देखकर व्यथित और लज्जित होकर वह अपने राज्य से चला गया और गुजरात के मुस्लिम बादशाह के यहाँ जाकर रहने लगा। रावल कर्णसी के सिंहासन पर बैठने के बाद नागौर मे हिन्दुओं के साथ मुजफ्फर खाँ के अत्याचार हुए। नागौर से तीस मील की दूरी पर बराहवंशी भगवतीदास नामक एक राजा रहता था। उसके 25
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