पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३२

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अधिकार में एक हजार पाँच सौ अश्वारोही सेना थी। भगवतीदास की लड़की अपने सौन्दर्य के लिए बहुत प्रसिद्ध हो रही थी। मुजफ्फर खाँ ने अपना एक आदमी भेजकर भगवतीदास मे टस लड़की की मांग की। भगवतीदास जव मुजफ्फर खाँ की आज्ञा का पालन न कर सका और उसके साथ युद्ध करने में भी भगवतीदास ने अपने आपको असमर्थ समझा तो उसने परिवार के साथ जैसलमेर चले जाने का निर्णय किया और जब वह अपने परिवार को लेकर जैसलमेर जा रहा था, मुजफ्फर खाँ ने अपनी फौज लेकर मार्ग में उम पर आक्रमण किया। भगवतीदास के साथ जो सेना थी, उसने मुजफ्फर खाँ की फौज के साथ बहुत देर तक युद्ध किया। उसमें चार सौ वराहवंशी राजपूत सैनिक मारे गये और मुजफ्फर खाँ ने भगवतीदास के माथ की समस्त स्त्रियों को कैद कर लिया। उनमें वह लड़की भी गिरफ्तार हो गयी। मुजफ्फर खाँ इन सब को कैद करके अपने साथ ले गया। भगवतीदास ने जैसलमेर जाकर रावल कर्णसी से मुजफ्फर खाँ के इस अत्याचार का वर्णन किया। कर्णसी को अत्यधिक क्रोध मालूम हुआ। उसने उसी समय अपनी सेना को तैयार होने के लिए आदेश दिया और एक शक्तिशाली सेना लेकर मुजफ्फर खाँ पर आक्रमण करने के लिए वह रवाना हुआ। मुजफ्फर खाँ की फौज के साथ जैसलमेर की सेना ने भयानक युद्ध किया और उनके तीन हजार सैनिकों का संहार करके मुजफ्फर खाँ से भगवतीदास की लड़की और स्त्रियों के साथ-साथ समस्त सम्पत्ति छीन ली और जैसलमेर में भगवतीदास को लाकर सोप दी। अट्ठाईस वर्ष तक राज्य करने के बाद रावल कर्णसी ने परलोक की यात्रा की। उसके बाद उसका पुत्र लाखनसेन सन् 1271 ईसवी में जैसलमेर के सिंहासन पर बैठा। उसके बुद्धिमानी के व्यवहारों को सुनकर कोई भी हँसेगा। एक दिन रात की बात है आवादी के वाहर बहुत से सियार चिल्ला रहे थे। लाखन के पूछने पर बताया गया कि ये सियार सर्दी के कारण चिल्ला रहे हैं। यह सुनकर लाखनसेन ने प्रत्येक सियार को एक-एक कम्बल देने का आदेश दिया। इसके बाद भी जब कि राज्य की तरफ से कम्बलों का प्रवन्ध हो चुका और उनका चिल्लाना जारी रहा तो लाखनसेन ने फिर पूछा- "अब ये क्यों चिल्ला रहे हैं?" इसके उत्तर में लाखनसेन को बताया गया कि उनके पास रहने के लिए घर नहीं हैं इसलिए चिल्ला रहे हैं। लाखनसेन ने उनके लिए घर बनवाने की आज्ञा दी। आज्ञा के अनुसार उनके लिए मकान बनवाये गये। राजा लाखनसेन के द्वारा इस प्रकार जो वर वनवाये गये थे, उनमें से कुछ अव तक वहाँ पर पाये जाते हैं। लाखनसेन कनाडदेव सोनगरा का समकालीन था। उसकी रानी ने एक बार उसके प्राणों की रक्षा की थी। उसकी रानी सोढा वंश में उत्पन्न हुई थी। राज्य में उसी का प्रभुत्व काम कर रहा था। उसके पिता की राजधानी अमरकोट में थी। वहाँ से उसने बहुत से आदमियों को वुलवाकर राज्य में अच्छे पदों पर रखे थे। लाखनसेन ने चार वर्ष तक सिंहासन पर बैठकर राज्य किया। पुण्यपाल लाखनमेन का लड़का था। पिता के वाद वह सिंहासन पर बैठा। उसका व्यवहार अच्छा न था। इसलिए राज्य के सामन्तों ने उसे सिंहासन से उतार दिया और जैतसी को जा गुजरात में जाकर रहने लगा था, सिंहासन पर विठाया। पुण्यपाल अपने राज्य से निकल 26