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इन दिनों में भारतवर्ष का प्रत्येक प्रान्त और जिला संघर्पमय हो रहा था औप गंगा के किनारे से लेकर समुद्र तक युद्ध की एक भयानक ऑधी दिखाई देती थी। राजपूत राजाओं के साथ अंग्रेजों के इस सहयोग और संगठन ने मराठो, पठानों और पिण्डारी लोगों में एक विजली पैदा कर दी थी। उन लोगों ने हमारे इस संगठन को तोड़ देने के लिये सबसे पहले हाडौती राज्य के आस-पास आक्रमण करने की तैयारियाँ की थीं। लेकिन उनको असफल बनाने के लिए मेरे परामर्श के अनुसार जालिम सिंह ने भी अपने यहाँ पूरा प्रवन्ध किया। वह अंग्रेजों पर पूरा विश्वास करता था और अंग्रेज अधिकारी भी उस सहयोग में जालिम सिंह को सबसे आगे समझते थे। जो लोग हमारे सहयोग की योजना पर संदेह करके विवाद करते थे, उनको उत्तर देते हुए मैं कह देता था: "महाराज, जो कुछ आप कहते है, मैं उस पर संदेह नहीं करता। वह दिन दूर नहीं जब समस्त भारतवर्ष में एक ही राजनीतिक शक्ति काम करेगी।" सन् 1817-18 की यह वात है, इन्हीं वर्षो मे ही इस भविष्यवाणी की सच्चाई का प्रमाण मिल गया। उस समय हमने यद्यपि समस्त भारतवर्ष को जीतकर अथवा सहयोग प्राप्त करके अपने अधिकार में नहीं कर लिया था। लेकिन इतना जरूर हुआ कि उस समय जो कहा गया था, वह बहुत अंशो में सही निकला। प्लासी के युद्ध में विजयी होकर अंग्रेजों ने इस देश में एकाधिकार प्राप्त किया। अंग्रेजों ने अपनी उस सफलता के लिए राजपूत राजाओ की नीति साम, दाम, दण्ड और भेद को अपनाया। इस प्रकार देश की विरोधी शक्तियों को नष्ट कर दिया गया। बोपणा के बाद सबसे पहले कोटा के जालिम सिंह ने अंग्रेजो के साथ मित्रता कायम की और उसके फलस्वरूप कोटा राज्य में आक्रमणकारी शत्रुओं के अत्याचारों का नाश हो गया। उसने हमारी नीति और घोपणा पर विश्वास किया, इसलिए हमने उसकी भीतरी और बाहरी-सभी कठिनाईयो में खुलकर उसका साथ दिया। राजस्थान मे ऐसा कोई राजा न था जो आक्रमणकारी लुटेरों के अत्याचारों से अनेक बार पीड़ित न हो चुका हो। इसलिए राजपूतों का सर्वनाश करने वाले अत्याचारी लुटेरो के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अग्रेजो ने प्रतिज्ञा कर ली थी। उसमें राजपूत राजाओं का साथ देना अनिवार्य रूप से आवश्यक था। उन्होंने वैसा किया भी। उनमें अधिक राजनीतिज्ञ और दूरदर्शी जालिम सिंह था। सबसे पहले उसने उन शत्रुओं के विरुद्ध आवाज उठायी, जिन्होने समस्त राजस्थान का अनेक बार सर्वनाश किया था। इस बात का उल्लेख किया जा चुका है कि जालिम सिंह के यहाँ कुछ मराठे ऊँचे पदो पर काम करते थे और जालिम सिंह उन पर बहुत विश्वास करता था। वे मराठे इस बात को नहीं चाहते थे कि अग्रेजो के साथ जालिम सिंह की मित्रता था। उन मराठों ने अनेक प्रकार के तर्कों के साथ इस मित्रता का विरोध किया। लेकिन उनके तर्को का जालिम सिंह पर कोई प्रभाव न पडा। उसने सफलता पूर्वक पचास वर्ष तक कोटा राज्य में शासन किया था। वह राजनीति को समझता था। इस बात को वह खूब जानता था कि राज्य के हितों की रक्षा के लिए अग्रेजो की मित्रता आवश्यक है। उसने समझाया कि इस मेत्री के साथ जो अधीनता स्वीकार करनी पड़ रही है, उसका महत्व है। इसके अभाव मे लुटेरो के द्वारा राज्य का जो विध्वस और विनाश होता आ रहा है, वह अधिक घातक है। लगातार झगडो और उपद्रवों की अपेक्षा इस अधीनता मे अधिक उन्नति की जा सकती हैं। जालिम सिंह ने इस प्रकार के अनेक तर्क सामने रख कर अपने उन 305