पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३१८

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घनिष्ठ बन्धु तथा गोवर्धन दास से पृथक रहना चाहिये। गोवर्धनदास को हाडौती राज्य से बिल्कुल हट जाने की जरूरत है।" मई महीने के मध्य में इस प्रकार की बाते हुई और जून में गोवर्धनदास को राज्य के विद्रोहात्मक अपराध मे कोटा राज्य से दिल्ली भेज दिया गया। इसके बाद महाराव किशोर सिंह और राज राणा जालिम सिंह में सद्भाव पैदा कराने के उद्देश्य से एक सार्वजनिक सभा की गयी। उस सभा मे दोनों का फिर से स्नेह और सद्भाव देखकर उपस्थित लोगों ने बडी प्रसन्नता प्रकट की। इस प्रकार सभा अपने उद्देश्य मे सफल हुई। सन् 1820 ईसवी के अगस्त के महीने की 17 तारीख को एक बड़े समारोह में कोटा के सिंहासन पर किशोर सिंह को बिठाया गया। अंग्रेजी सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत ' से सबसे पहले मैंने किशोर सिंह के मस्तक पर राजतिलक किया और हीरे-जवाहरात के आभूपण महाराव के गले मे पहनाकर उसकी कमर में मेने तलवार बॉधी। महाराव ने इसके बदले उपहार में मुझे एक सौ सोने की मोहरें दी। इसके बाद अंग्रेज गवर्नर जनरल की तरफ से मैने महाराव को कीमती खिलत दी। इसके लिए राज राणा जालिम सिह ने अंग्रेजी सरकार और उसके प्रतिनिधि के रूप मे मुझे धन्यवाद देकर पच्चीस सोने की मोहरें भेट मे दी। इसके पश्चात् कोटा के सेनापति की हैसियत से महाराव के मस्तक पर माधव सिंह ने तिलक किया और उसकी कमर में तलवार बाँधकर बहुमूल्य वस्तुएँ भेट में दी। महाराव ने प्रचलित प्रणाली के अनुसार उन भेंटो को लौटा कर माधव सिंह को खिलत दी और कोटा के सेनापति को उसे सनद दी। इस अभिपेक के उत्सव के बाद मैं एक महीने तक कोटा में रहा। इन दिनो मे मेंने महाराव और राज राणा के बीच सद्भाव बढ़ाने का प्रयत्न किया। मुझे उसमें उस समय पूरी तौर पर सफलता मिली। इस अवसर पर दोनों ने विश्वास पूर्वक रहने,राज्य का शासन करने और हाडा राजवंश की मर्यादा की वृद्धि करने की जो प्रतिज्ञायें की, उनसे मुझे अपार संतोप और सुख मिला। कोटा से विदा होने के चार दिन पहले मैंने सभी सामन्तों, प्रमुख अधिकारियों और राज्य के श्रेष्ठ पुरुपो को एकत्रित किया। उस समय सभी लोगों ने एक दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से स्नेह, चेप्टाभाव और सम्मान प्रकट किया। सबसे बड़ी बात यह हुई कि उपस्थित लोगों ने राजराणा जालिम सिंह के प्रति अपना श्रद्धा भाव प्रकट किया और कहा : "हम लोग वयोवृद्ध राजराणा के प्रति कभी श्रद्धा मे कमी न करेंगे।" स्वर्गीय महाराव की मृत्यु के बाद कोटा मे जो आपसी संवर्प पैदा हुआ था, वह अत्यन्त घातक था। उस सघर्प में इस राज्य का भयानक विनाश हो सकता था। लेकिन अन्त मे सभी बातें सद्भाव के साथ सुलझ गयीं और राज्य की व्यवस्था संतोप और सौभाग्य के साथ आरम्भ हुई। कोटा राज्य मे जालिम सिंह ने दण्ड नामक एक कर जारी किया था। उसको उसने सदा के लिए हटा दिया, जिससे उसको अपने जीवन के अंतिम दिनों मे बडी ख्याति मिली। 312