पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३१९

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अध्याय-70 कोटा राज्य का संघर्ष इन दिनों में कोटा राज्य के षड़यंत्रों का मूल कारण जालिम सिंह की अविवाहिता स्त्री से पैदा हुआ गोवर्धनदास था। जालिम सिंह प्यार से उसको गोवर्धन जी कहा करता था। पिछले परिच्छेद मे लिखा जा चुका है कि गोवर्धनदास राजनीतिक अपराधी के रूप में हाड़ौती राज्य से निकाल दिया गया था और उसके कहने के अनुसार दिल्ली और इलाहाबाद उसको रहने के लिये भेज दिया गया था। इसलिए वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहने लगा था। वहाँ के स्थानीय अंग्रेज अधिकारियो को उसकी देखभाल रखने के लिए सावधान कर दिया गया था। दिल्ली मे रहकर गोवर्धनदास ने सन् 1821 ईसवी के अंतिम दिनों में झबुआ की उस लड़की से विवाह करने के लिए-जो वहाँ के सामन्त की अविवाहिता स्त्री से पैदा हुई थीमालवा जाने की आज्ञा ले ली थी। उसके उस नगर में पहुंचते ही कोटा राज्य मे अशान्ति के बादल दिखायी पड़ने लगे और उसके बाद ही कोटा से लेकर बूंदी तक विद्रोहात्मक उत्तेजना फैलने लगी। सैफअली राज पलटन नामक राणा की विशेष सेना का सेनापति था और अपनी तीस वर्ष की अवस्था मे वह विश्वास और वीरता के लिए प्रसिद्ध हुआ था। उसने किशोर सिंह के पक्ष का समर्थन किया। इस प्रकार विद्रोही समाचारों के मिलने पर आरम्भ मे जालिम सिंह ने विश्वास न किया। लेकिन बुद्धिमानी के साथ उसने सैफअली की सेना के साथ राज्य की दूसरी सेना भी रख दी, जिससे विद्रोही सेना नियंत्रण में रह सके। इन्हीं दिनो में महाराव किशोर सिंह ने सैफअली के अधिकार की सेना को अपने महल में बुलवाया और वह जल के रास्ते से होकर महाराव की आज्ञानुसार महल मे आ गयी। यह समाचार जालिम सिंह को मिला। उसने अपनी सेना लेकर सैफअली की सेना पर आक्रमण किया और दो ऊँचे स्थानों पर तोपों को लगवा दिया जिनसे राजधानी से लेकर चम्बल नदी के दोनो किनारो पर वसे हुए नगरों तथा ग्रामों पर गोलों की वर्षा होने लगी। यह देखकर महाराव किशोर सिंह अपने भाई पृथ्वी सिंह और कुछ सैनिको को साथ लेकर बूंदी राज्य चला गया। उसके जाते ही जो सेना महल में आयी थी, उसने आत्म-समर्पण कर दिया। इसलिए महाराव किशोर सिंह ने जो प्रयत्न किया था, वह व्यर्थ हो गया। इस युद्ध में विशन सिंह ने अपने दोनो भाइयो को छोड़ दिया और उसने जालिम सिंह के साथ अपना सम्पर्क स्थापित किया। इस समय कोटा राजधानी मे जो अशान्ति पैदा हुई, उसको दूर करने और विद्रोही उत्तेजना को मिटाने का केवल यही एक उपाय था कि संधि के अनुसार काम किया जाये। इसलिए सबसे पहले बूंदी के राजा के पास एक पत्र भेजा गया। उसमें लिखा गया कि कोटा के 313