पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३२१

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की आशा करते हैं। वह वृन्दावन से चल कर 15 अप्रैल तक मथुरा पहुँच गया। वह कोटा लौटकर आ जाने का विचार कर चुका था। लेकिन गोवर्धनदास ने उसके पास सन्देश भेजकर उसके कोटा आने का विरोध किया और कहला भेजा कि महाराव को वहाँ नहीं जाना चाहिये। गोवर्धनदास पडयंत्रकारी था। वह दिल्ली मे रहकर भी महाराव के पक्ष मे एक न एक योजना का निर्माण करता रहता था। इसलिए धीरे-धीरे विद्रोह की जो आग सुलग रही थी, वह भयानक होने लगी। हाड़ा वंश के जो लोग उसके पक्ष में थे, उनको गोवर्धन दास बराबर उकसाता रहता था और कितने ही लोगों के विद्रोही संदेश महाराव के पास पहुंचते रहते थे। महाराव ने अपने साथ एक ऐसी सेना का संगठन किया और वह उस सेना को लेकर हाड़ौती राज्य की तरफ रवाना हुआ। रास्ते में जो राज्य मिले, उनके राजाओं से महाराव ने कहा कि मै अपने राज्य का सिंहासन प्राप्त करने के लिए जा रहा हूँ। उसकी इस यात्रा को देखकर और उसकी बातों को सुनकर लोगों को अनुमान हुआ कि महाराव किशोर सिंह का अपने राज्य जाना अब आवश्यक हो गया है। इस प्रकार का अनुमान लगाकर सभी लोगों ने प्रसन्नता प्रकट की और महाराव के साथ चलने वालों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। सन् 1822 ईसवी की बरसात के अन्तिम दिनों में लगभग तीन हजार सेना साथ में लेकर महाराव चम्बल नदी के किनारे पहुंच गया। नदी को पार करके महाराव ने राजस्थानी बोली में एक ऐसी घोषणा का प्रचार किया, जिसे वहाँ के लोग भली-भाँति समझ सकें और कोई भी महाराव के आह्वान करने पर इन्कार नहीं कर सके। उस घोपणा में कहा गया कि महाराव ने सन्धि के अनुसार न्याय की माँग की है। इसलिए प्रत्येक हाड़ा राजपूत को महाराव की सहायता के लिये आना चाहिये। महाराव किशोर सिंह की इस घोषणा को सुनकर हाड़ा राजपूत आकर एकत्रित होने लगे। उस समय घोषणा को सुनकर वे लोग भी महाराव के पास पहुंचे, जो जालिम सिंह के वंश के थे और जिन्होंने समय-समय पर जालिम सिंह के द्वारा बहुत लाभ उठाये थे। ऐसे लोगों ने भी किशोर सिंह के पक्ष में समर्थन किया और उसकी सहायता के लिए वे रवाना हुये। इनमें से अधिक आदमी ऐसे थे, जिन्होंने किशोर सिंह को कभी देखा भी न था और न उसके सम्बन्ध में कुछ जानते ही थे। उस समय ऐसा मालूम होता था कि राज्य में प्रजा से लेकर कर्मचारियों और अधिकारियों तक सभी लोग महाराव किशोर सिंह के पक्ष में हैं। राज्य की इस परिस्थिति को जालिम सिंह भी स्वीकार करता था। सन् 1822 ईसवी की 16 सितम्बर को अंग्रेज सरकार के पोलोटिकल एजेन्ट की हैसियत से मेरे पास एक पत्र भेजकर महाराव किशोर सिंह ने संधि के लिये प्रार्थना की। उस पत्र में लिखा थाः "मैं क्या चाहता हूँ? यह जानने के लिए चॉद खाँ ने कई बार इच्छा प्रकट की थी। इसलिए मिर्जा मोहम्मद अली बेगू और लाला सालिग राम अपने दोनों वकीलों के द्वारा अपनी माँगें मैं आप के पास भेज रहा हूँ। मैं फिर आपके पास पूर्व निश्चित सन्धि की शर्तो को भेज रहा हूँ। आप को उन्हीं के अनुसार कार्य करना चाहिये। अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत से आपको मेरे साथ न्याय करना चाहिये। मालिक को मालिक की तरह और नौकर को नौकर की तरह रहना चाहिये। संसार में सर्वत्र यही होता है। यह आपसे छिपा नहीं है। 315