________________
महाराव किशोर सिंह को अतिथि के रूप में रखने और उसका सम्मान करने में कोई हानि नहीं है। लेकिन अगर किशोर सिंह ने बूंदी में पहुँचकर जालिम सिंह के विरुद्ध सैनिक तैयारी की तो उसका उत्तरदायित्व आपके ऊपर होगा। गत दिनों में नीमच नामक स्थान पर जो अंग्रेजी सेना रहती थी, उसके सेनापति के पास आदेश भेजा गया कि झबुआ और बूंदी राज्य के मध्यवर्ती रास्ते पर एक सेना लगा दी जाये और अगर गोवर्धनदास महाराव किशोर सिंह से मिलने के लिए बूंदी की तरफ आवे तो उसे किसी भी दशा में कैद कर लिया जाये। यह समाचार गोवर्धनदास को मालूम हो गया। इसलिए वह पहाड़ी गुप्त रास्तों से होकर निकल गया और अंग्रेजी सेना उसे कैद न कर सकी। लेकिन बूंदी के राजा को कोटा से जो पत्र भेजा गया था, उसके कारण वह गोवर्धनदास को अपने यहाँ किसी प्रकार रखने के लिए तैयार न था। इसलिए वह बँदी से छिपे तौर पर भागकर मारवाड़ चला गया। लेकिन वहाँ के राजा ने उसको अपने यहाँ आश्रय न दिया। उस दशा में विवश होकर वह दिल्ली में आ गया, वहाँ पर वह अधिक सावधानी के साथ रखा गया। महाराव किशोर सिंह ने भी बूंदी राज्य छोड़ दिया और वह वृन्दावन की तरफ तीर्थ यात्रा करने के लिए चला गया। उसने ब्रजनाथ जी के मन्दिर में रह कर धार्मिक जीवन विताने का निश्चय किया। बूंदी में रहकर महाराव ने किसी प्रकार की सहायता नहीं प्राप्त की। कोटा से बूंदी का फासला बहुत न था। इसलिए जब तक वह बूंदी में रहा, कोटा में उसके समर्थक अनुकूल वातावरण का अनुमान लगाते रहे। लेकिन जब वह बूंदी से उत्तर की तरफ चला गया तो लोगों ने विश्वास किया कि महाराव ने किसी आशा से उस तरफ की यात्रा की है, उसे निश्चित रूप से वहाँ से सहायता मिलेगी। इन दिनों में कोटा के सामन्त महाराव के पास सहानुभूति के पत्र भेजते रहे। महाराव बूंदी से चलकर जिस राज्य में पहुँचा, वहाँ के राजा ने उसके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया। भरतपुर का राज्य कोटा के समीप था। वहाँ के राजा ने जब महाराव के आने का समाचार सुना तो वह स्वयं उसके पास नहीं गया और अपने प्रतिनिधियों को भेजकर अपने न पहुँच सकने की विवशता प्रकट की। उन प्रतिनिधियों ने महाराव के पास जाकर अपने राजा की तरफ से बातें की और भरतपुर के राजा ने जो मूल्यवान उपहार भेजे थे, उनको उन्होंने महाराव के सामने उपस्थित किया। भरतपुर के राजा के न आने पर महाराव ने उनकी अवहेलना समझी और उसके भेजे हुए उपहारों को उसने वापस कर दिया। भरतपुर के राजा ने जब सुना कि महाराव ने हमारे भेजे हुए उपहारों को वापस कर दिया है तो उसने अपना अपमान समझ कर उसे भरतपुर राज्य से चले जाने के लिए संदेश भेज दिया। महाराव वहाँ से वृन्दावन चला गया और कुछ दिनों तक वह ब्रज कुञ्ज में रहा। इन दिनों में वह शासन के प्रलोभनों को भूल गया और भक्ति-भावना में लिप्त होकर वह अपना समय काटने लगा। इन दिनों में उसने अनुभव किया कि जो लोग वहाँ पर उसको बराबर घेरे रहते हैं, वे उससे धन पाने की आशा रखते हैं। इसका प्रभाव महाराव पर अच्छा नहीं पड़ा। उसने समझ लिया कि यहाँ पर रहकर मेरा जो सम्मान होता है, वह मेरा व्यक्तिगत सम्मान नहीं है, बल्कि कोटा का राजा समझ कर लोग मेरा सम्मान करते हैं और मुझसे भूमि और धन पाने 314