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पहली अक्टूबर को प्रात:काल होते ही सेनायें आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ीं। जालिम सिंह की सेना में आठ दल पैदल सैनिकों के थे, बत्तीस तोपें थीं और चौदह दल अश्वारोही सैनिकों के थे, प्रत्येक दल में दो सौ सैनिकों की संख्या थी। इनमें से पाँच पलटनें अर्थात् पाँच दल पैदल और दस दल अश्वारोही अपने साथ चौदह तोपें लेकर आगे बढ़े। शेप सेना पाँच सौ गज की दूरी पर जालिम सिंह के साथ आवश्यकता के लिए सुरक्षित रखी गयी। अंग्रेजी सेना में दो दल पैदल और छ: दल अश्वारोही सैनिकों के थे। उसमें एक दल गोलन्दाजों का था। यह सेना राव राणा जालिम सिंह की दाहिनी तरफ होकर चली। दोनों सेनायें आगे जाकर नदी से कुछ दूरी पर एक ऊँचे मैदान में खड़ी हो गयी। महाराव किशोर सिंह की सेना नदी की दूसरी तरफ थी। उसने अपने शिविर को छोड़ कर सेयद अली सेनापति की सेना को बाईं तरफ लगाया और स्वयं अपने पाँच सौ हाड़ा राजपूतों को लेकर दाहिनी ओर खड़ा हुआ। दोनों ओर की सेनायें एक दूसरे पर आक्रमण करने के लिए विल्कुल तैयार थीं। उस समय मैंने एक बार अंग्रेज सेनापति की ओर देखा और फिर क्षण भर में मेने सोच डाला कि मुझे एक बार इस समय महाराव किशोर सिंह को समझाने का काम कर लेना चाहिये। कदाचित् इस समय मुझे सफलता मिल जाये और उसकी समझ में आ जाने से होने वाला विध्वंश और विनाश बच जाये। यह सोचकर मैंने अपने सेनापति को आक्रमण करने से रोका। इसके वाद दोनों ओर की सेनाओं के बीच में जाकर मैंने युद्ध रोकने का प्रस्ताव किया और कहा : "हमारे और आपके लिए यह जरूरी है कि युद्ध रोका जाये। महाराव किशोर सिंह को सम्मानपूर्वक कोटा के राज सिंहासन पर बिठाया जाएगा और सभी के अब तक के अपराधों को क्षमा किया जाएगा। इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए इस समय केवल पन्द्रह मिनट का समय है। उसके बाद युद्ध अनिवार्य हो जायेगा।" इस प्रस्ताव को सुन कर कर महाराव ने जो उत्तर दिया, उससे साफ जाहिर हो गया कि उसने अपने पत्र में लिखकर जो शर्ते भेजी हैं, उसमें से वह एक भी शर्त छोड़ने के लिए तैयार नहीं है और अपने साथ तीन हजार सैनिकों को लेकर ही वह कोटा में प्रवेश करना चाहता है। पन्द्रह मिनट का समय बीत गया। उस प्रस्ताव के निष्फल होते ही सेनायें आगे वढ़ीं। महाराव की जो सेना दाहिनी ओर लगी हुई थी, उसने जालिम सिंह की सेना को रोकने के लिए आगे कदम बढ़ाये। प्रस्ताव में दिया गया समय वीत चुका था। इसलिए युद्ध का आदेश मिलते ही जालिम सिंह की तरफ से गोलों की वर्षा आरम्भ हो गयी और उसके बाद उसकी अश्वारोही सेना आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ी। हाड़ा राजपूतों ने सदा की भॉति इस अवसर पर भी अपनी वीरता का प्रदर्शन किया और उन्होंने फतेहावाद तथा धौलपुर के युद्ध की भाँति इस युद्ध में भी भयानक रूप से आक्रमण किया, जिससे जालिम सिंह की तरफ के बहुत से सैनिक गोलियो की वर्षा मे मारे गये। हाड़ा राजपूत भीषण रूप से मार करते हुए उस स्थान पर पहुँच गये, जहाँ पर जालिम सिंह मौजूद था। लेकिन वहाँ पर उनकी शक्तियाँ निर्बल पड़ गयीं और वे भागने के लिए कोई रास्ता न पाकर नदी को पार कर दूसरी तरफ निकल गये। महाराव को जालिमसिंह की तरफ के चार सौ अश्वारोही सैनिकों ने घेर लिया। 319