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इस आदमी की आकृति और महाराव के भाई विशन सिंह की आकृति एक थी। दोनो की शारीरिक बातों में इतनी अधिक समता थी कि सहज ही राज्य के किसी आदमी को उस पर इस तरह का संदेह नहीं हो सकता था कि वह विशन सिह नहीं है। उस आदमी के इस प्रकार प्रचार करने से पहले तो कोटा के लोगों की हवा बिगड़ी। कुछ उत्तेजना बढ़ती हुई मालूम हुई। लेकिन उसके बाद बहुत जल्दी यह मालूम हो गया कि जो आदमी विशन सिंह के नाम से कोटा मे आया है, वह महाराव किशोरसिंह का भाई नही है। साथ ही यह भी मालम हुआ कि महाराव किशोर सिंह को बुलाकर राज सिंहासन पर बिठाने की जो चेष्टा की जा रही है, उसको नष्ट करने के लिए इस प्रकार का यह एक पड़यंत्र रचा गया है। उदयपुर के राणा का विवाह महाराव किशोर सिंह की बहन के साथ हुआ था। इसलिए वहाँ के राणा की बहुत बडी अभिलापा यह थी कि महाराव किशोरसिंह को कोटा के सिंहासन पर बिठाया जाये। राणा ने जब उस पड़यंत्र का समाचार सुना और यह भी सुना कि उसका प्रभाव महाराव किशोरसिंह के सिंहासन पर बैठने पर पड रहा है तो राणा ने बड़ी सावधानी और बुद्धिमानी के साथ उस पड़यंत्रकारी को पकड़वाकर उदयपुर राजधानी में बुलवा लिया। उसके पड़यंत्र का रहस्य बाद में कुछ प्रकट न हुआ। लेकिन यह मालूम हो गया कि विशन सिंह के नाम से जो आदमी आया था, वह जयपुर राज्य का रहने वाला था और किसी अपराध के कारण उसको दण्ड देकर लँगडा कर दिया गया था। उसके सम्बन्ध में इस प्रकार का रहस्य जाहिर होने पर उसको प्राणदण्ड दिया गया। जो पडयंत्र रचा गया था, उसका अन्त हो गया। बड़े सम्मान और समारोह के साथ महाराव किशोरसिंह का आगमन कोटा में हुआ। राज्य की सम्पूर्ण प्रजा ने उस समय खुशियाँ मनायी। महाराव किशोरसिंह ने इस बार सिंहासन पर बैठकर उन सभी बातों को अपने हृदय से निकाल दिया, जिसके कारण उसने एक बार सिंहासन छोड़ दिया था और राज्य में भयानक विद्रोह पैदा हो गया था। महाराव का भाई विशन सिंह राजधानी छोड़कर कोटा से बीस मील की दूरी पर अन्ता नामक स्थान में रहता था। सिंहासन पर बैठने के बाद महाराव ने कुछ ग्राम और नगर देकर विशन सिह की जागीर बढा दी। ___ इसके पहले एक वार और महाराव किशोरसिंह और जालिम सिंह में सद्भाव कायम हुआ था। उस समय मै एक महीने तक कोटा राजधानी में इस अभिप्राय से रहा था कि जिससे उन दोनो के बीच का सद्भाव मजबूत हो जाए और फिर किसी प्रकार की उसमें कोई बाधा न पड़े। महाराव के सिंहासन पर बैठ जाने के बाद और राज्य मे पूर्ण रूप से शान्ति कायम हो जाने के पश्चात् जालिमसिंह राजधानी से बाहर छावनी में जाकर रहने लगा। इसके बाद जालिम सिंह पाँच वर्ष तक और जीवित रहा। कोटा के राज-सिंहासन पर जितने भी राजा बैठे थे, उनमे जालिम सिंह राजा तो न था लेकिन उसने एक राजा की हैसियत से वहाँ का शासन किया था। उसके जीवन मे अनेक विशेपतायें थीं। इसलिए कोटा राज्य के इतिहास का अन्त करते हुए जालिम सिंह के अन्तिम जीवन मे उसको कुछ विशेषताओं पर प्रकाश डालना जरूरी है। 324