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नहीं करते थे। इतना ही नहीं बल्कि आवश्यकता पड़ने पर राजस्थान के दूसरे भागों और भारतवर्ष के अधिकांश नगरों में कोटा का अनाज जाया करता था। जालिमसिंह में अनेक गुण आश्चर्यजनक थे। अपराधियों के साथ वह कठोर व्यवहार करता था और जिन लोगों को वह समझता था, उनकी वह पूर्ण रूप से सहायता करता था। अपने इन गुणों के अनुसार कभी-कभी वह साधु और सन्यासियों की भिक्षा का दसवाँ भाग ले लेता था और जहाँ आवश्यकता समझता था लोगों को सोने के आभूपण दान में देता था। उसने अपने राज्य के सामन्तों को निकाल कर उनकी भूमि पर अधिकार कर लिया था और दूसरे राज्यों के सामन्तों को अपने यहां आश्रय देकर उनकी सभी प्रकार सहायता की थी। जालिम सिंह कवियों और जादूगरों पर विश्वास नहीं करता था। झूठी प्रशंसा करने वालों पर वह क्रोध करता था। इस प्रकार की अपनी प्रशंसा सुनकर वह कभी प्रसन्न नहीं होता था। कवियों की झूठी प्रशंसाओं से उसे एक प्रकार की चिढ़ थी। उसका कहना था कि इन कवियों ने अपनी इन आदतों के द्वारा न जाने कितने राजवंशों का विनाश किया है। अपनी इन्हीं आदतों के लिए कोटा से लेकर बाहर तक प्रसिद्ध था और इसीलिए भाट और कवि उसके पास कभी आते न थे। जालिम सिंह बहुत अधिक परिश्रमी था। पच्चीस वर्ष में उसके परिश्रम को देखकर लोग आश्चर्य करते थे। वह आलसी न था और जो आलस्य करते थे, उनसे वह अप्रसन्न रहता था। वह कहा करता था कि शासक को विलासी और आलसी नहीं होना चाहिए। उसका विश्वास था कि अनाज में घुन की तरह विलासिता मनुष्य का क्षय करती है इसीलिए वह स्वयं विलासिता का विरोधी था और दूसरों को विलासिता में नहीं देखना चाहता था। हर समय वह कुछ काम किया करता था और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए वह सदा शिक्षा देता था। वह कहा करता था कि एक आलसी और विलासी राजपूत अपने कर्त्तव्य और धर्म से गिर जाता है। राजवंश के लोगों को शिक्षा देते हुए वह कहा करता था कि राजा सिंहासन पर बैठकर नहीं बल्कि घोड़े पर बैठ कर राज्य की रक्षा करता है। जालिम सिंह घोड़े पर बैठकर शिकार खेलने के लिए जाया करता था। जब उसकी दृष्टि बिलकुल निर्बल हो गयी थी और अपनी एक आँख को वह पहले ही खो चुका था, उस समय वह पालकी में बैठकर शिकार खेलने के लिए जाता था और उसके साथ उस समय हजारों सैनिक चलते थे। शिकार पर जाने के समय अपने सामन्तों के साथ वह संकोच छोड़कर बातें किया करता था। कर्मचारियों के भीतरी भावों को जानने के लिए मौका मिलने पर वह छिप कर उनकी बातें सुना करता था। ऐसे अवसरों पर उनकी कमजोरियों को जानकर वह उनको अच्छी बाते सिखाने का प्रयास करता था। जंगल में शिकार खेलने के बाद वह सब के साथ घने पेड़ो के नीचे बैठता था और बिना संकोच के सैनिकों तथा कर्मचारियों के साथ शिकार खेलने तथा उस समय की घटनाओ पर विवाद करने में वह एक अपूर्व सुख अनुभव करता था। जालिम सिंह ऐसे अवसरो की बातचीत में सब को बाते करने का मौका देता था। उन अवसरो पर कभी-कभी हँसी मजाक की वात आ जाती थी, उस समय वह भी खूब हँसता था। उसके इन व्यवहारों से सैनिक और 326