उस स्थान के दक्षिण में और एक मील उत्तर की तरफ बनास नदी बहती है। उस- नदी में बहुत सी मछलियाँ तैरती हुई दिखायी देती है। उनके कारण नदी का जल देखने मे बहुत सुन्दर मालूम होता है। वहाँ से पश्चिम की तरफ तीन मील की दूरी पर विशाल उदय सागर है। कुछ कारणों से राजधानी से बाहर राणा ने यह स्थान तैयार करवाया है। यह वात जरूर है कि यह स्थान स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी मालूम होता है। लेकिन उसके तैयार कराने में केवल इतना ही कारण नहीं हैं। राज महल से इतनी दूरी पर इस स्थान के निर्माण का कुछ विशेष कारण भी है। इस स्थान को देखकर मेरे मन में अनेक प्रकार की भावनाएँ पैदा हुई। मुझे यह भी अनुभव हुआ कि राजधानी से इतनी दूरी पर इस स्थान को तैयार कराके राणा ने कम्पनी के प्रतिनिधियों के ठहरने के लिए व्यवस्था की है। उसकी इस व्यवस्था में एक राजनीतिक दूरदर्शिता है, इसमें सन्देह नहीं। पहले-पहल जव मैंने राणा से मुलाकात की तो मैंने उसको परेशान हालत में पाया । उसको देखकर और उसकी परिस्थितियों को अनुभव करके मैंने उसके साथ अपनी हमदर्दी प्रकट की। उससे उसको बहुत शान्ति मिली। उसने सहायता करने के लिए मुझसे अनुरोध किया। उसके अनुरोध को सुनकर मैंने सोचा कि यह भी अच्छा रहेगा और सहायता करने के नाम पर अनेक प्रकार से दखल देने का मुझे अधिकार रहेगा। सबसे बड़ी बात यह होगी कि ऐसा करने से राज्य के किसी व्यक्ति को सन्देह करने का मौका भी न मिलेगा। यही हुआ भी। इस दूरवर्ती स्थान पर मुकाम मिलने के कारण राणा को अनेक प्रकार की सुविधाएँ मिली और उसके शासन की परिस्थितियों से हम लोगों का सम्पर्क दूर रहा। इस स्वास्थ्यपूर्ण स्थान पर रहकर हम लोगों ने सुख का अनुभव किया। कई बातों के कारण यह स्थान मणिक मालूम हो रहा था। यहाँ की जलवायु बहुत अच्छी थी। ऊँटों पर लाद-लादकर हमारा सामान यहाँ पर पहुँचाया गया और हम लोगों ने वहाँ की सभी चीजों अपने अनुकूल बनाया। 13 अक्टूबर-उस स्थान को छोड़कर जब हम लोग रवाना हुए, उस समय सवेरा था। उस प्रात:काल में मारवाड़ के सैकड़ों जंगली ऊँटों के चिल्लाने की आवाज सुनायी दे रही थी। उस समय कोई दूसरी आवाज हम लोगों के कानों में नहीं आती थी। लेकिन बाद में हाथियों की भयानक आवाजें सुनायी पड़ने लगी। उन हाथियों में उनके बच्चे इधर-उधर दौड़ रहे थे। वे वच्चे स्वतन्त्र रूप से इधर-उधर दौड़ते हुए कभी हम लोगों के पास आ जाते थे और कभी दूर भाग जाते थे। ऐसा मालूम होता था, मानो वे आपस में खेल रहे हैं। उनको देखकर हम लोग बहुत खुश हो रहे थे। उस समय उन हाथियों के बच्चों को देखकर और उनके चलने तथा दौड़ने से प्रसन्न होकर हम सभी लोग जोर से एक साथ हँस पड़े। इन हाथियों के बीच में एक वच्चा आठ वर्ष का मालूम हुआ। वह अधिक ऊँचा नहीं था। लेकिन चंचल और शैतान बहुत मालूम होता था। जो लोग हम लोगों का खाना बना रहे थे, वह आठ साल का वच्चा उनके पास वार-वार जाता और उसके बाद लौटकर तेजी के साथ भागता । उसको देखकर साफ जाहिर होता था कि वह भोजन बनाने वालों के साथ शैतानी कर रहा है। उसकी इन हरकतों को देखकर मुझे आदमी के बच्चों की आदतों.का स्मरण होने लगा। मैं सोचने लगा कि हम लोगों के बच्चों में भी बहुत कुछ इसी प्रकार की आदतें पायी जाती हैं। 330
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