के लिए भयानक हो जाती है। उन दिनों में झरनों और नदियों का जल उफन-उफन कर कुओं में भर जाता है और अनेक प्रकार की गन्दगी पेंदा हो जाने के कारण उन कुओं के जल में काले रंग का तेल-सा तैरने लगता है। इसका फल यह होता है कि उन कुओं का जल न केवल पीने में वदजायका हो जाता है, बल्कि वह अनेक प्रकार से दूपित, अरुचिकर, अप्रिय और स्वास्थ्य को खराव करने वाला हो जाता है। उसके पीने वालों को उन दिनों में बड़ा कष्ट रहा करता है। वहाँ पर इन्हीं कुओं का जल पीने के काम में आता है। इन कुओं के जल को दूपित और अरुचिकर समझने के बाद भी मैं उनको शुद्ध और विकारहीन बनाने का कोई उपाय वहाँ के लोगों को नहीं बता सका। वहाँ के लोग इन कुओं के जल को क्षार और अम्ल के द्वारा शुद्ध कर लेने की कोशिश किया करते है। उन कुओं का जल जब क्षार के द्वारा शुद्ध किया जाता है तो वह जल किसी प्रकार भोजन बनाने और पीने के लिए बहुत कुछ काम का बन जाता है। अम्ल का प्रयोग करने से जल का दूपित अंश और विकार जल के नीचे बैठ जाते हैं। राजपूत लोग अपने मैले कपड़ों को धोने के समय सावुन का भी प्रयोग करते हैं। 12 अक्टूबर को प्रात:काल पाँच वजे विगुल बजा। तैयार होने के लिए यह एक आदेश था। उस बिगुल के बजते ही सभी लोग तैयार होने लगे और में भी अपनी तैयारी में लग गया। उस समय मैंने देखा कि पीले वस्त्र पहने हुए सैनिक वृद्ध सेनापति के सामने खड़े हैं और अश्वारोही सैनिक लाल पगड़ी बाँधकर बड़ी तेजी के साथ पीले अँगरखे वॉधने, पहनने और पेटियाँ बाँधने में लगे हैं। महल का नगाड़ा भी वज चुका था। वह जाहिर करता था कि सूर्यवंशी राजा जग गये है। हम लोग तेयार होने के बाद अपने स्थानो से चलकर सूर्यद्वार पर पहुँच गये। वहाँ पर देखा कि भिण्ड आमंट और वंशी के चार सामन्त अपनी सेनाओं के साथ तैयार खड़े हैं और राजा का आदेश पाकर हम लोगों को वहाँ की सीमा पर पहुंचाने के लिए तैयार हैं। राजा का यह एक अच्छा व्यवहार हम लोगो के साथ था। कुछ कठिनाइयों और आकांक्षाओं के कारण भी राज्य की सेना के साथ सीमा तक पहुँचना हम लोगो के लिए जरूरी था। इसलिए राज्य की सेना के साथ हम लोग वहाँ से रवाना हुए और पहाडी रास्तों को हम लोगों ने धीरे- धीरे पार किया। यहाँ तक पहुँचा कर राज्य की सेना वापस जाने को थी। इसलिए हम लोगों ने राणा और सामन्तों को धन्यवाद देकर वहाँ से विदा किया। आठ बजने से पहले हम लोग तरह मील का रास्ता तय करके उस स्थान पर पहुँच | गये। जहाँ पर रुकने और विश्राम करने के लिए हम लोगों ने पहले से ही निश्चित कार्यक्रम बना लिया था। इसलिए वहाँ पहुँच कर हम लोगों ने मुकाम किया। वह स्थान मेड़ता और तुप ग्राम के बीच का था। उसके रास्ते में दोनों तरफ बहुत अच्छे वृक्ष लगे हुए हैं। उनको देखकर उस स्थान की रमणिकता का सहज ही अनुमान होता है। यहाँ से चित्तौड़ की तरफ जाती हुई जो भूमि दिखायी देती है, वह उस स्थान की सतह से नीची है। स्थान के तीन मील उत्तर को तरफ वह स्थान है जहाँ पर राणा और उसके सामन्त लोग शिकार खेलने के लिए जाया करते हैं। उस स्थान मे वहुत हिरण ओर बाघ पाये जाते हैं। 329
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३३५
दिखावट