सम्प्रदाय के राजपूतों के सरदार निन्दी पति का मन्त्री था। यही कारण था कि वह चूंन्डावत लोगों का परम शत्रु था। माणिक चन्द ने चून्डावत लोगों को नष्ट करने के लिए सभी प्रकार के पड़यन्त्र किये थे और अपने उपायों में उसने कुछ शेप नहीं रखा था। अपने शत्रुओं के सर्वनाश के लिए उसने पठानों और मराठों के साथ मेल कर लिया था और अपने पड़यन्त्रों के कारण वह एक बार कैद कर लिया गया था और उस समय जुर्माने में रुपये न दे सकने के कारण उसको भयानक कष्टों और अपमानों का सामना करना पड़ा था। इसमें सन्देह नहीं कि वह एक दूरदर्शी और बुद्धिमान पुरुप था। यही कारण था कि वह वंश के लोगों में प्रधान माना जाता था। इसं समय माणिक चन्द की अवस्था पच्चास वर्ष थी। वह सदा प्रसन्न रहता था, रहस्यपूर्ण बातें करता था और अपने इन्हीं गुणों के कारण वह एक बार राणा का भी प्रिय बन गया था। इसके फलस्वरूप राणा ने उसके लड़के को अपने उत्तरदायित्व पूर्ण पद पर नियुक्त कर दिया था। उस लड़के के सम्बन्ध में लोगो का कहना है कि यदि वह जीवित रहता तो निश्चित रूप से वह बड़ी ख्याति पाता। उसके सम्बन्ध में इस प्रकार की धारणा का कारण यह था कि वह अपने पिता के समान वुद्धिमान और दूरदर्शी एवम् रामसिंह की तरह रूपवान था। लेकिन अपने स्वाभिमान के कारण उसने आत्महत्या कर ली थी। लोगों का कहना है कि माणिक चन्द ने किसी समय विना किसी सबव के उसका अपमान किया था और उस अपमान को सहन न कर उसने आत्महत्या कर ली थी। यहाँ पर माणिक चन्द के सम्बन्ध में कुछ प्रकाश डालना बहुत आवश्यक मालूम होता है। उसने मेवाड़ राज्य से दो लाख पचास हजार रुपये वार्पिक वसूल करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया था। इस कार्य के लिए उसने जो आदमी नियुक्त किये थे, उनके अकर्मण्य तथा अविश्वासी होने के कारण उसको इस कार्य में सफलता न मिली और जितने रुपये शुल्क में उसे वसूल करके देने थे उनका छठा भाग भी वह राज्य को न दे सका। उसकी बुद्धिमत्ता को देखकर यह अनुमान किया गया था कि वह इस कार्य को सरलतापूर्वक कर सकेगा और दूसरों की अपेक्षा वह अच्छा सावित होगा। माणिक चन्द ने मेरे कैम्प के पास अपना मुकाम निश्चित करके मुझसे मुलाकात के लिए प्रार्थना की। भेंट के समय मैंने देखा कि वह बहुत अस्त-व्यस्त अवस्था में है। उस समय उसने प्रकट किया कि उसने कई बार मुझसे मुलाकात करने की चेष्टा की। लेकिन समय को अनुकूल न देखकर वह चुप हो जाता था। माणिक चन्द की इन बातों को मैंने ध्यान से सुना, उसके प्रति राणा को जो अविश्वास पैदा हो गया था, उसके सम्बन्ध में बातें करते हुए उसने कहा : "जिन कर्मचारियों को रख कर मैंने शुल्क वसूल करने का कार्य आरम्भ किया था, वे कर्मचारी विश्वासी न थे, इसलिए उत्तरदायित्व के रुपये न तो मैं वसूल कर सका और न मैं राज्य को दे सका। मेरे ऊपर राज्य के जो रुपये बाकी हैं, मैं उनको अदा करूँगा।" माणिक चन्द अपने पड़यन्त्रों के कारण बदनाम हो चुका था इसलिए उसकी वातों पर विश्वास नहीं हो सका। वह अपने वादे को पूरा कर भी न सका और इस अवस्था में यह 333
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३३९
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