पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३४५

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उस मन्दिर में एक वीर पुरुप की अश्वारोही प्रतिमा स्थापित है। यह वह वीर पुरुप है, जो उस ग्राम का अधिकारी था और जिसने बादशाह की सेना के साथ युद्ध करके अपने प्राणों की बलि दी थी। उसके मरने पर उसकी स्त्री चिता मे बैठकर सती हुई थी। उसी के नाम से जो मन्दिर इस स्थान पर बनवाया गया, उसका नाम सती मन्दिर रखा गया। इस गांव के पास से दो रास्ते दो तरफ को गये हैं। एक रास्त वीर गुला मार्ग से होकर जाता है। उससे नाथद्वारा तक आसानी के साथ जाया जा सकता है। दूसरा रास्ता चिराई और प्रसिद्ध चतुर्भुज देव के पवित्र स्थान की तरफ गया है। पर्वत श्रेणी के द्वारा बाधा उत्पन्न होने से हम लोगों ने ओलद्वारा होकर कैलवाडा की तरफ चलना आरम्भ किया और कैलवाड़ा नगर से तीन मील उत्तर की तरफ मैदान में पहुँचकर हम लोगों ने मुकाम किया। उस मैदान मे आमों के बहुत-से वृक्ष थे। यह स्थान आगे चलकर विस्तृत हो गया है। इस स्थान के जंगली होने में कोई बात बाकी नहीं है। लेकिन प्रकृति ने उसको अपने हिसाब से सभी प्रकार सुन्दर बना रखा है। इसलिए उसके इस सौन्दर्य को महत्त्व देना भी आवश्यक है। उसकी इस सुन्दरता से मैं प्रसन्न हुआ। __इस स्थान की और भी कुछ ऐसी बातें हैं, जो अपनी तरफ से मुझे आकर्पित कर रही हैं। यह विस्तृत मैदान जयपुर की भूमि से एक हजार फुट और समुद्र की सतह से तीन हजार फुट ऊँचा है। इस ऊँचे मैदान के ऊपर वहुत-सी शिखर पंक्तियाँ दिखायी देती हैं। उन शिखरों में बहुत से झरने है और उन झरनो से लगातार पानी गिरता रहता है। झरनों के जल से पश्चिमी मारवाड की भूमि को उपजाऊ बनाने में वहाँ के किसानों को बड़ी सहायता मिली है। इन झरनों का जल जो पूर्व की तरफ जाता है, वह मेवाड़ के विशाल तालाबों को भरा करता है। पहले इन झरनों के जल की व्यवस्था कुछ और थी। कांकरोली नामक सरोवर का निर्माण ऐसा किया गया था, जिससे इन सभी झरनों का जल मेवाड़ की तरफ वहा करता था और मरुभूमि की तरफ बहुत कम पानी जाता था। लेकिन इन दिनों की हालत कुछ दूसरी है। पश्चिम की तरफ अगर इन झरनो का जल न जाता तो मारवाड़ की बहुत-सी भूमि उपजाऊ न बन सकती थी। इन दिनों में दौलत सिंह कमलमीर का शासक है। हम लोगों के आने का समाचार पाकर उसने अपनी बड़ी तैयारियों के साथ हमसे मुलाकात करने का निश्चय किया और अपने बहुत से आदमियो को लेकर हम लोगों से मुलाकात करने के लिए रवाना हुआ। उसके साथ उसकी लाल पताका थी। राजा दौलत सिह घोड़े पर सवार था। करीब आने पर वह घोड़े से उतर पड़ा। मैं भी अपने घोडे से उतर कर जमीन पर आ गया। दोनो आगे बढ़े और बडे स्नेह के साथ हम दोनों ने एक दूसरे का आलिंगन किया। दौलत सिह से भेंट करके मैं अपने घोड़े पर बैठा और उसी समय वह भी अपने घोडे पर सवार हुआ। साथ-साथ चलते हुए हम दोनो वर्तमान परिस्थितियो की बातें करने लगे। दौलत सिंह राणा भीमसिंह का एक निकटवर्ती सम्बन्धी है। महाराज उसकी उपाधि है और राणा के दरवार में उसे अच्छा सम्मान प्राप्त है। राणा का अत्यन्त निकटवर्ती सम्बन्धी होने के कारण वह शिवधन सिंह का उत्तराधिकारी माना गया। 339