पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३४४

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मेरे साथ जितने भी लोग थे, सभी ने उन राजपूतों को देखा और उनके स्वस्थ शरीर देखकर वे आपस में उनकी प्रशंसा करने लगे। वास्तव में उनके शरीरों को देखकर उनकी वीरता का सहज ही अनुमान होता था। उनकी मूंछे लम्बी थीं। उनके सरदार के सिर पर पगडी मस्तक की शोभा बढ़ा रही थी। सरदार के साथ बाकी जो लोग आए थे, वे सभी साधारण श्रेणी के लोग थे। वे कुरता और पायजामा पहने थे और उनके सिर पर साधारण पगड़ियाँ थीं। पहले कलममीर के दुर्ग की रक्षा करने के लिए ये लोग नियुक्त किये जाते थे। परन्तु मराठों ने इनकी शक्तियो को इधर बहुत दिन पहले से नष्ट कर दिया है। अब ये लोग राणा की प्रजा में गिने जाते है। ये लोग राज्य के सभी कार्यों में काम आते हैं और वर्ष में निश्चित कर भी राणा को अदा करते है। इन लोगो के पूर्वजों ने जो वहादुरी के काम किये थे। मैंने उनकी प्रशंसा उन लोगों के सामने की। उस प्रशंसा को सुनकर वे लोग बहुत प्रसन्न हुए। इस सुमैचा ग्राम में हमारे छूटे हुए आदमी आकर हमसे मिले। उन सबको देखकर हमें बड़ी शान्ति मिली। 19 अक्टूबर-चित्तौड़-बनास नदी के प्रवेश को छोड़ देने के बाद पहाड़ी स्थानों में रहने के लिए राणा को विवश होना पड़ा था और उस दशा में उसकी बहुत-सी प्रजा पहाड़ के नीचे की भूमि में आकर रहने लगी थी। हम लोगों ने कैलवाड़ा नगर की ओर यात्रा की। यह नगर उस समय की बहुत-सी ऐतिहासिक बातों का परिचय देता है। वहाँ पर जितने भी पर्वत और जो नदियाँ हैं, उन सबके साथ उस समय की ऐतिहासिक घटनाओं का सम्बन्ध है। हमने ऊपर जिस उपत्यका के प्राकृतिक सौन्दर्य की प्रशंसा की है, यह स्थान भी बहुत-कुछ उसी प्रकार रमणीक है। यहाँ के पर्वत में होकर जो मार्ग जाता है, उसके बाई तरफ 'करी सरोवर' नामक एक नदी प्रवाहित होती है। पैदल चलने वाले लोग यहाँ से एक सीधे रास्ते में चलकर कैलवाड़ा नगर पहुंच जाते हैं। परन्तु वह मार्ग अत्यन्त घने जंगलों के बीच से गुजरता है। इसलिए वह सर्वथा संकटपूर्ण है; जिसके कारण कोई भी साहस मनुष्य उस रास्ते से जाने का साहस नहीं करता। इस नदी का नाम 'करी सरोवर' क्यों पड़ा, इसको जानने के लिए मैंने कोशिश की। परन्तु उसका कुछ रहस्य मालूम नहीं हुआ। मैने जितने भी लोगों से पूछा, कोई कुछ बता नहीं सका। हम लोग मूर्च नामक ग्राम से होकर अपने मार्ग में बढ़े। इस ग्राम में एक राठौर सामन्त का अधिकार है। उस ग्राम के बिल्कुल पास एक छोटा-सा सरोवर और उस सरोवर के समीप एक अत्यन्त रमणीक मन्दिर बना हुआ है। उसको देखकर मैंने एक व्यक्ति से पूछा ": यह कौन-सा मन्दिर है?" मेरे प्रश्न को सुनकर उस आदमी ने जवाब दिया :"इसका नाम सती मन्दिर है।" उस आदमी के इस उत्तर को सुनकर मुझे सन्तोप नहीं मिला। मै उस मन्दिर के सम्बन्ध मे कुछ अधिक जानना चाहता था। इसलिए मैने उस आदमी को अपने पास बुलाया और उससे मैंने मन्दिर के सम्बन्ध में अधिक जानने की कोशिश की। उस आदमी के द्वारा मालूम हुआ कि उस मंदिर को ग्राम के अधिकारी के पूर्वजो ने बनवाया था। बादशाह औरंगजेव की सेना के आक्रमण करने पर उस ग्राम के अधिकारी ने लड़कर अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया और उसकी स्त्री अपने पति के मृत शरीर को लेकर चिता मे भस्मीभूत हुई थी। 338