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भाटों और दूसरे कवियों के द्वारा पृथ्वीराज की वीरता की ख्याति इन दिनों में दर तक फैली हुई थी। राव सुरतान की लड़की ताराबाई ने भी उसकी वीरता की प्रशंसा सुनी थी। उसने अनेक कवियो के द्वारा जाना था कि पृथ्वीराज युद्ध करने में अत्यन्त कुशल और शूरवीर है। उसने यह भी सुना कि पृथ्वीराज घोड़े का एक अच्छा सवार है और एक अच्छे शरवीर क्षत्रिय के गुण उसमें पाये जाते हैं। ताराबाई ने इस प्रकार पृथ्वीराज की प्रशंसा सुन कर अपने पिता से बातचीत की और उसने उससे कहा कि अगर पृथ्वीराज अफगानियों को भगा कर बदनौर का उद्धार कर सकता है तो मैं उसके साथ विवाह कर सकती हूँ। __ जयमल अपनी बात को पूरा नहीं कर सका, इस बात को समझ कर पृथ्वीराज ने अफगानों मे बदनौर के उद्धार की प्रतिज्ञा की थी। इस कार्य के लिए उसने पाँच मौ अच्छे सैनिक सवारों का चुनाव किया और अफगान के विरुद्ध बदनौर पर आक्रमण करने के लिए उसने तैयारी कर ली। ऐसे अवसर पर ताराबाई ने माथ चलने और युद्ध में शामिल होने के लिए अनुरोध किया। पृथ्वीराज ने उसके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। ___ अपने पाँच सौ सैनिक सवारों के साथ पृथ्वीराज टोड़ा में उस दिन पहुँचा जब ताजिया उठाने की विदनौर में तैयारी हो रही थी और राजमहल के आँगन में हसन और हुसैन-दोनों भाइयों का जनाजा रखा था। अफगान सरदार महल में कपड़े पहन कर नीचे आने की तैयारी में था। महल के बाहर ताजिये के साथ जाने के लिए बहुत से आदमियों की भीड़ थी। पृथ्वीराज ने अपने साथ के सैनिकों को बाहर छोड़ दिया और ताराबाई तथा अपने अभिन्न मित्र संगर सरदार के साथ उम एकत्रित भीड़ में जाकर शामिल हो गया। अफगान सरदार ने महल से नीचे आकर उस भीड़ की तरफ देखा और उसने आदमियों से पूछा कि इस भीड़ में जो तीन नये घोड़े के सवार दिखायी देते हैं, वे कौन हैं? अफगान सरदार के मुख से यह प्रश्न निकला ही था कि एकाएक पृथ्वीराज के बरछे और नारावाई के तीर से अफगान सरदार जख्मी होकर जमीन पर गिर गया। इसके साथ ही वे तीनों भीड़ से निकल कर नगर के फाटक पर पहुँच गये। वहाँ पर एक हाथी के द्वारा पृथ्वीराज का एक साथी मारा गया। यह देखकर ताराबाई ने अपनी तलवार से उस हाथी की सूंड को काट डाला। हाथी वहाँ सं तेजी के साथ भागा और इस मौके पर वे तीनों अपनी सेना में जाकर मिल गये, जो नगर के बाहर कुछ दूरी पर खड़ी थी। __ पृथ्वीराज ने अपने सवारो की संना को लेकर अफगानों पर आक्रमण कर दिया। उस समय इस युद्ध के लिए अफगान सेना तैयार न थी। इसलिए अफगान सेना के सैनिक युद्ध में ठहर न सके। वे सब के सब इधर-उधर भागने लगे। उस भगदड़ में अनेक अफगान सैनिक मारे गये। अफगान सरदार के एक भाई को पृथ्वीराज के सैनिकों ने इसी मौके पर मार डाला। अजमेर के नवाव मूलुखों के अपनी फौज लेकर राजपूतो से युद्ध करने का निश्चय किया। उसकी इस खबर को पाकर पृथ्वीराज ने अपनी सेना के साथ अजमेर की यात्रा की और प्रात:काल होते ही पृथ्वीराज ने वहाँ पहुँच कर अजमेर में भयानक मारकाट आरम्भ कर 344