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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३५१

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दी और उसी अवसर पर उसने वितलीगढ़ को पराजित किया। राजपूतो की इस मारकाट से वदनोर से लेकर अजमेर तक हाहाकार मच गया। पृथ्वीराज ने अफगानों से वदनौर का उद्धार किया और वहाँ का शासन राव सुरतान को सौंप दिया। इसके वाद तारावाई का विवाह पृथ्वीराज के साथ हो गया। इसके कुछ ही दिनों के वाद पृथ्वीराज को उसकी बहन का पत्र मिला। उसकी वहन अपनी ससुराल में थी और वड़ी विपद में फंसी हुई थी। उसका पति अफीम का सेवन करता था और उसको रोज बुरी तरह से अपमानित किया करता था। ____ वहन का पत्र पाकर पृथ्वीराज तुरन्त रवाना हुआ और सिरोही में वहन के यहाँ आधी रात को पहुँचा। वह सीधा महल में चला गया। उसका वहनोई सो रहा था। पृथ्वीराज ने अपनी बन्दूक की नली वहनोई के गले पर रखी। उसी समय उसकी नींद खुल गयी। यह दृश्य देखकर पृथ्वीराज की वहन ववरा उठी। उसने अपने भाई से क्षमा माँगी। पृथ्वीराज ने कहा कि यदि वह मेरी बहन से हाथ जोड़कर क्षमा माँगे और भविष्य में किसी प्रकार का अनुचित व्यवहार न करने का वचन दे तो मैं उसे क्षमा करूँगा। उसके बहनोई ने पृथ्वीराज की इस बात को स्वीकार कर लिया और उसने वैसा ही किया, जैसा कि पृथ्वीराज ने कहा। इसके बाद पृथ्वीराज ने उसे छाती से लगाकर उसका सम्मान किया। __ पृथ्वीराज पाँच दिन तक अपनी बहन के पास बना रहा। वहाँ से लौटने के समय बहनोई ने अपने बनाये हुए लड्डू रास्ते में खाने के लिए उसको दिये। पृथ्वीराज कमलमीर में रहा करता था। वहनोई के यहाँ से लोटकर और कमलमीर के पास पहुँचने पर पृथ्वीराज ने पानी पीने के समय बहनोई के दिये हुए दो लड्डू खाये। उसके वाद आगे चलते ही उसकी हालत खराव होने लगी। वहाँ से पृथ्वीराज ने कमलमीर में सन्देश भेजकर अन्तिम भेंट के लिए ताराबाई को बुलाया। लेकिन लड्डुओं में मिला हुआ विप इतना तेज था कि ताराबाई के आने के पहले ही उसकी मृत्यु हो गयी। तारावाई ने आकर चिता वनवाई और पति के मृत शरीर को लेकर वह चिता में जल कर राख हो गयी। 20 अक्टूबर-आज प्रात:काल हम लोग यात्रा नहीं कर सके। आज हमें मारवाड़ की तरफ यात्रा करनी थी। जिस चाटी से होकर हमे जाना था लोगों का कहना था कि वह घाटी बडी भयानक है। लेकिन उसके साथ ही लोगो ने यह भी बताया कि हाथी और घोड़े अंकुश और चाबुक के भय से चले जाते हैं। इसलिए हम लोगों ने उसी घाटी के रास्ते से जाने का निश्चय कर लिया। दोपहर तक खाना-पीना खत्म करके हम लोगो ने अपनी यात्रा शुरू कर दी। रवाना होने से पहले जब हम लोगों का सामान बाँधा जा रहा था, सभी लोगों में अंगे के रास्ते के सम्बन्ध मे ही बाते होती रही। जब हम लोग रवाना हुए, उस समय दोपहर के तीन बज चुके थे। सबसे पहले हमारे साथ के वे लोग रवाना हुए, जो मार्ग के देखने-समझने का काम करते थे। ___ हम सब लोगों ने पहले से ही यह निश्चय कर लिया था कि रात हम लोग वहाँ पर व्यतीत करंगे, जहाँ पर मेवाड़ और मारवाड की सीमा मिलती हैं। उस स्थान के सम्बन्ध में हम 345