पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३५३

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स्थान इस योग्य था कि मुकाम किया जा सके। मजबूरी अवस्था में हम लोग नदी के किनारे का रास्ता पकड़कर धीरे-धीरे आगे की तरफ चल रहे थे। अधकार इतना अधिक था कि कुछ दिखाई नहीं देता था। नदी के जल वहने से जो आवाज हो रही थी, वही हमारा उस समय सहारा था और उसी से हम लोगों को पथ प्रदर्शन मिल रहा था। किसी प्रकार हम लोग आगे की तरफ बढ़ते रहे । नदी के जल की आवाज से जो हम लोगों को सहारा मिल रहा था, उसमें भी गड़वड़ी पड़ने लगी। बाहर का जल जो नदी में गिर रहा था, उसकी आवाज अधिक तेज हो जाती थी और उसके कारण हम लोगो के सामने एक नया असमंजस पैदा हो जाता था। लेकिन परिस्थितियाँ सदा एक-सी नहीं चलती। उस समय हम लोग ढालू स्थान पर चल रहे थे। कुछ आगे जाने के बाद आगे का रास्ता चौड़ा मिला। विस्तार में स्थान पाने के कारण नदी का जो जल गहराई में बह रहा था, वह फैल गया था और नदी की चौड़ाई अधिक हो गयी थी। अपने मार्ग में चलते हुए हमने आकाश की तरफ देखा, वादलों के विना आसमान दिखायी पड़ा। आकाश में तारे चमक रहे थे। हम लोग अपने रास्ते पर चलते जा रहे थे लेकिन हम लोग चिन्ताओं से ग्रस्त थे। रास्ता भयानक जंगली था और एकाएक भयानक जंगली जानवरों का हम लोगों पर आक्रमण हो सकता था। हमें यह पहले से ही मालूम था कि मार्ग में हिंसक जानवरों का भय रहेगा। चीतों और वावों के कारण रास्ता सुरक्षित नहीं हैं। यह वात हम लोगों को मालूम थी। हम लोगों की चिन्ता इतनी ही न थी। पहाड़ों पर रहने वाले लुटेरों का भय भी हम लोगों को था। जंगल में हिंसक पशुओं से भी अधिक भय उन लुटेरों का था, जो अचानक रात के अन्धकार में आक्रमण कर सकते थे। फिर भी हम लोग अपने मार्ग पर चले जा रहे थे। कुछ आगे बढ़ने के बाद एकाएक हम लोगों को एक झाड़ी में प्रकाश दिखायी पड़ा। उस झाड़ी के पास वरगद का एक पेड़ भी था और उस पेड के नीचे घोडों के सवारों का एक दल दिखायी पड़ा। हम लोग जहाँ पर पहुँचे थे, वहाँ पर ठहर गये और अनेक साथ के आदमियों से परामर्श करने लगे। जो संकट हम लोगों को दिखायी पड़ा, उसका सही अनुमान हम लोगों को न हो सका। इस दशा में हम लोगो ने समझा कि उस बरगद के नीचे लुटेरों का एक दल है, जो अपने घोड़ों पर है। अगर उस लुटेरों के दल ने आक्रमण किया तो हम सब लोगो को मुकावला करना होगा। इसके लिए हम लोग तुरन्त सतर्क और सावधान हो गये। ___ हम सब लोग अपने स्थान पर खड़े थे। अन्धकार के कारण मीलों की दूरी मार्ग संकट पूर्ण दिखायी दे रहा था। रास्ते को छोड़कर हम लोग दाहिने और बायें भी नहीं जा सकते थे। क्योंकि जंगल के हिंसक पशुओं का भय था। साथ ही यह भी भय था लुटेरों का कोई दूसरा दल कहीं हम लोगों पर एकाएक हमला न कर दे। इस प्रकार के असमंजस में हम लोग अपने स्थान पर खड़े थे और इस वात का निर्णय न कर सके कि इस भयानक समय में हम लोगो को क्या करना चाहिए। इसी समय घोडों के उन सवारो के दल की तरफ हमने फिर एक वार देखा । जहाँ पर वह दल मौजूद था, एक अलाव जल रहा था और अलाव की आग को बेरे हुए उस दल 347