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के लोग दिखायी दे रहे थे। वे सब सशस्त्र सैनिक और घोड़ों के सवार थे और उनकी संख्या लगभग तीम के लगभग मालूम हो रही थी। दूर से हम लोगों को यह भी अनुमान हुआ कि वे लोग आपस में बात कर रहे हैं। लेकिन उनकी बातचीत इतनी धीरे हो रही थी कि सनी नही जा सकती थी। लगातार उनकी तरफ देखने से यह भी मालूम हुआ कि वे लोग हुक्का पी रहे हे और जब एक आदमी हुक्का पी लेता है तो वह हुक्के की नली को दूसरे आदमी की तरफ कर देता है। उन शस्त्रधारी आदमियो को देखकर अनुमान होता था कि वे सब मरुभूमि के रहने वाले हैं। क्योंकि उनके सिर पर पंचरंगी पगड़ी थी और उनके सिर के बाल चुंघराले थे। अलाव की जलती हुई आग मे यह सब दिखाई दे रहा था। उन लोगों के पास एक छोटा-सा चबूतरा भी दिखायी दे रहा था। शायद किसी अच्छे आदमी के स्मारक स्वरूप यह चबूतरा वनवाया गया है, ऐसा मालूग होता है। जो कुछ भी हो यह तो मालूम हो गया है कि वह चबूतरा बैठने के काम में आ सकता है। मैंने लगातार शस्त्रधारी उस दल की तरफ देखा। उस दल के लोगो का एक सरदार भी उनके साथ था। उसके सिर पर पगड़ी उसके सरदार होने का दूर से परिचय दे रही थी। क्योंकि दूसरो की पगड़ी से उसकी पगडी कुछ विशेपता रखती थी और ऐसा मालूम होता था कि उसकी पगड़ी में सोने की एक जंजीर लटक रही है। वह सरदार हिरन के चमड़े की बडी पहने दिखायी दे रहा था। ____ उस दल की इन सभी बातों को देखने, समझने और अनुमान लगाने के बाद मैं आगे की तरफ बढ़ा और कुछ निकट जाकर मैंने उस सरदार को राम-राम किया। इसके साथ ही मैने गनोहा सरदार का कुशल समाचार उससे पूछा। मैं इस बात को जानता था कि गनोहा का सरदार उन लोगों में बीच बहुत प्रसिद्ध है और सभी लोग उसका सम्मान करते हैं। मेरे मुख से राम-राम सुनकर और मेरी बातों से मेरी ओर आकर्पित होकर उन लोगों ने मेरी ओर देखा। पचास वर्ष पहले गोदवारा मेवाड़-राज्य मे शामिल था। लेकिन उसके बाद यह उस राज्य में नही रहा। वह मेवाड ओर मारवाड़ राज्यो की सीमा समझा जाता था, और वहाँ पर. प्रायः भयानक दुर्घटनायें हुआ करती थीं। उन लोगों के पास पहुँचने पर मुझे अनेक बाते मालूम हुई, यह भी मालूम हुआ कि उस स्थान पर कितने ही मृत पुरुपों के स्मारक बने हुए है और प्रत्येक स्मारक पर घोड़े पर चढ़े हुए और हाथ में भाला लिए हुए एक वीर पुरुप की मूर्ति है। उन स्मारको को मैं ध्यानपूर्वक देखता रहा। प्रत्येक स्मारक की मूर्ति इस बात का परिचय देती है कि उस वीर पुरुप का इस घाटी की रक्षा करते हुए बलिदान हुआ है। प्रत्येक स्मारक पर मिती और सम्यत् खुदा हुआ है। उसको पढ़कर मालूम होता है कि उस वीर पुरुप का कन्च बलिदान हुआ था। इन स्मारको से मैं बहुत प्रभावित हुआ और बड़ी देर तक उनको देखने के कारण मेरे मनोभावों में अनेक प्रकार की बाते पैदा होती रहीं। आधी रात से अधिक समय हो चुका था। हम सभी भूखे थे। लेकिन किसी प्रकार का कोई भीजन इस समय मिलने की आशा नहीं थी। डॉक्टर डंकन और कैप्टन बौने ने हाथी की पीठ से झुल उतार ली और उसको बिछाकर उस दल के सरदार के पास वे दोनो बैठ गये। 348