पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३५६

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अध्याय-71 माहीरवाड़ा अथवा मेरवाड़ा की यात्रा ___ माहीर जाति को लोग मीणा जाति भी कहते हैं। इस जाति के लोग पहाड़ों पर रहा करते हैं और पर्वत के जिस भाग में रहते हैं, वह माहीर वाडा कहलाता है। माहीर लोगों की उत्पत्ति मीणा अथवा माहीर जाति से मानी जाती है। वे लोग माहीरोत अथवा माहीरावत के नाम से प्राचीन काल में पुकारे जाते थे। कमलमीर से लेकर अजमेर तक का जो सम्पूर्ण स्थान अरावली पर्वत पर है, वह माहीरवाड़ा कहलाता है। वह स्थान लम्बाई में नव्वे मील और चौड़ाई में छः सौ बीस मील तक पाया जाता है। चौड़ाई का भाग कहीं पर कम और कही पर अधिक है। समुद्र की सतह से तीन हजार से लेकर चार हजार फुट तक वह स्थान ऊँचा है और उसके ऊपर विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े वृक्ष पाये जाते हैं। उस भूमि पर प्रकृति का जो सौन्दर्य देखने को मिलता है, वह कदाचित् कहीं अन्यत्र न मिलेगा। यो तो माहीर जाति का वर्णन बहुत विस्तार में है। लेकिन यहाँ पर उसको अधिक विस्तार में लिखने की जरूरत नहीं है। इस दशा में ठम जाति को प्रमुख और महत्त्वपूर्ण जो वातें जानने के योग्य हैं, उन्हीं को हम यहाँ लिखने की कोशिश करेंगे। मीणा जाति कई भागों में विभाजित है। उसके चीता नामक विभाग से माहीर लोगों की उत्पत्ति मानी जाती है। मीणा लोगों में जेता नामक एक शाखा है। राजपूतो की तरह उस जाति में बहुत-सी शाखायें पायी जाती है। उन शाखाओं के लोग बड़े स्वाभिमान के माथ अपने पूर्वजों का वर्णन करते हैं । मीणा जाति के चीता वंश के लोग दिल्ली के अन्तिम चौहान सम्राट के पौत्र को अपना आदि पुरुप मानते हैं। चौहान राजा के भतीजे लाखा के अनल और अनूप नामक दो लड़के पैदा हुए थे। उनके साथ विवाह करने के लिए जैसलमेर के राजा ने नारियल भेजा था। उनके बाद मालूम हुआ कि उस वंश की उत्पत्ति एक वैश्या के गर्भ से हुई है। इस दशा में वे लोग अजमेर से निकाल दिये गये थे। उस के बाद वे लोग अपने मामा के यहाँ जाकर रहने लगे। अनल का विवाह मीणा सामन्त की लडकी के साथ हुआ था और उससे चीता का जन्म हुआ। चीत्ता के वंश के लोग सदा से महीरवाड़ा में शासन करते आये थे। आमेर के उत्तरी भाग में चीत्ता के जो उत्तराधिकारी रहते थे, उनकी संख्या पन्द्रह थी। उनके बाद उनका सोलहवाँ पुरुप अजमेर के मुसलमानों के द्वारा मुसलमान बनाया गया और उसका नाम दाऊद खाँ रखा गया। उस समय से वे लोग मुस्लमानों में माने गये। दाऊद खाँ आथून नामक गाँव में रहता था। उस गाँव के सम्बन्ध के कारण महीरीतों का सरदार आथून खाँ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। चाङ्ग, झक और राजसी नगर उसके अधिकार 350