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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३६

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64 मूलराज को रत्नसी पर बड़ा क्रोध मालूम हुआ। उसने उसे बुलाकर कहा 'तुम्हारे अपराध से हम सबका सर्वनाश होने जा रहा है। तुमने दुर्ग की परिस्थिति महबूब खाँ के भाई को बतायी है। उसका परिणाम यह हुआ कि बादशाह की जो फौज निराश होकर यहाँ से चली गयी थी उसने फिर लौटकर दुर्ग पर आक्रमण किया है। इस समय जैसलमेर के सम्पूर्ण राज्य का प्रश्न है। हमारे महलों की राजकुमारियों और रानियों के धर्म की रक्षा कैसे होगी?" बड़े भाई मूलराज के मुख से इन भयानक बातो को सुनकर रत्नसी ने स्वाभिमान के साथ कहा- "हम लोग इस समय मृत्यु के सामने हैं। दुर्ग के भीतर खाने-पीने का कोई प्रबंध नहीं है और दुर्ग के बाहर वादशाह की फौज ने घेरा डाल रखा है। बादशाह की विशाल सेना को पराजित करना हम लोगों के लिए असम्भव है। अब तक दुर्ग में बन्द रहकर उसका सामना किया है। लेकिन कुछ दिनों से दुर्ग में खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं रह गयी है। ऐसी दशा में दो ही रास्ते हम लोगों के सामने हैं। या तो हम लोग बिना भोजन के तड़प- तड़पकर दुर्ग में प्राण दे देंगे अथवा शत्रुओं के द्वारा मारे जायेंगे। इन दोनों परिस्थितियों में राजपूतों के लिए युद्ध करते हुए प्राणो का त्याग करना सब प्रकार से श्रेष्ठ है। इसलिए बलिदान होने के पहले हमें महलों में रानियों को जौहर व्रत की आज्ञा दे देनी चाहिए। इसलिए कि हम सब लोगों के मारे जाने के बाद जेसलमेर में यवन बादशाह का राज्य होगा और उसके द्वारा यदुवंशियों का सम्पूर्ण गौरव नष्ट हो जाएगा। इसलिए महलों की राजकुमारियाँ और रानियाँ जौहर व्रत का पालन करे और उनकी चिताओ के जलने के साथ-साथ जैसलमेर के राजमहलों में आग लगा दी जाये। सम्पूर्ण सम्पत्ति जला डाली जाये। इसके पश्चात् हम सब लोग अपने- अपने हाथों में तलवारें लेकर युद्ध भूमि में प्रवेश करें और शत्रुओं का संहार करते हुए अपने- अपने प्राणों की वलि दें। यदुवंशियों के गौरव की रक्षा का इसके सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं हो सकता।" रत्नसी के मुख से इन शब्दों को सुनकर मूलराज को संतोप मिला। उसने अपने सामन्तों, परिवार के लोगों और अन्य प्रमुख व्यक्तियों को बुलाकर कहा- राजपूतों में हुआ है और आपके पूर्वजों ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए सदा अपने प्राणों का मोह छोड़ा है। इस समय फिर आपके सामने परीक्षा का समय है। इस समय पूर्वजों के गौरव की रक्षा के लिए एक बार फिर अपने हाथों में तलवारों को पकड़ना है।" इस प्रकार उत्तेजना पूर्ण बातें करके मूलराज महलों की तरफ रवाना हुआ। वहाँ की रानियों, राजकुमारियों और उनकी सहेलियों को एकत्रित करके मूलराज ने कहा- "हमारे वंश के पूर्वजों के सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा का समय उपस्थित हुआ है। अपने धर्म और गौरव को सुरक्षित बनाये रखने के लिए हम सबको अपने-अपने प्राणो की आहुतियाँ देनी हैं। अब अन्तिम समय है। आप सब जौहर व्रत की तैयारी करे।" इसी समय सोढावंशी मूलराज की प्रधान रानी ने कहा- "जौहर व्रत के लिए आज रात को हम सब तैयारी कर लेंगी और कल प्रात:काल इस संसार को छोड़कर हम सब स्वर्ग की यात्रा करेंगी।" प्रधान रानी के इन शब्दों को सुनकर राजमहलों की रानियाँ, राजकुमारियाँ और सामन्तों की स्त्रियाँ हर्प के साथ जौहर व्रत की तैयारी करने लगी। आप सब का जन्म 30