पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३६१

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उनकी लूट में हिस्सा लिया करता था। इसका एक कारण यह भी था कि लुटेरे उन्हीं स्थानों में लूटमार किया करते थे, जो देवगढ़ के अन्तर्गत थे और इस दशा में उन लुटेरों को किसी दूसरे सामन्त के द्वारा कैद होने का डर नहीं था। सोनगरा वंश के लोग भी इसी प्रकार का काम करते थे और उनके अत्याचार अत्यन्त भयानक थे। एक समय की घटना है। कोई मनुष्य विवाह करके अपनी नव विवाहिता स्त्री को लिए हुए गोड़वाड़ा के रास्ते से जा रहा था। कुछ लुटेरों ने उन दोनों को पकड़ा और उन्हें गोकुलगढ़ में ले आये। जो मनुष्य विवाह करके जा रहा था, उससे दण्ड में एक लम्बी रकम मॉगी गई। वह उस दण्ड को अदा न कर सका। इसलिए उसको बहुत दिनों तक कैद में रहना पड़ा। उसके बाद उन दोनों को छोड़ दिया गया। इस प्रकार लोगों को पकड़ने के लिए लुटेरों का एक दल छिपे तौर पर इधर-उधर घूमा करता था। इस प्रकार की चोरी और लूटमारी यहाँ पर बहुत दिनो से होती चली आयी है। मारवाड़ी मित्रों के साथ इस प्रकार बातें करते हुए हम लोग अपने रास्ते पर चल रहे थे और संकटपूर्ण मार्ग से पाँच मील आगे निकल गये थे। इसके बाद गानोरा का सामन्त अपने बहुत-से आदमियों के साथ मेरे पास आया और सम्मानपूर्वक उसने मुझसे भेंट की। इस सामन्त ने वातचीत के सिलसिले में अपनी विपदाओं की एक कहानी मुझसे कही। उसकी बातों को सुनकर मैंने उसके साथ अपनी सहानुभूति जाहिर की। हम लोग घोड़ों पर बैठे हुए उस स्थान की तरफ चलने लगे, जहाँ पर हम लोगों का मुकाम होने वाला था। रास्ते में उस सामन्त के साथ राणा और मारवाड़ के राजा के सम्बन्ध में वातें होती रहीं। उसने राणा के सम्बन्ध में अनेक वातें मुझसे पूछीं। सामन्त अजित सिंह एक प्रसिद्ध आदमी है। उसकी अवस्था तीस वर्प, लम्वा शरीर और देखने में साहसी मालूम । होता है। गानोरा, गोदवारा में एक प्रसिद्ध नगर है। वहाँ से राणा को पहले चार हजार राठौर सेना युद्ध के समय प्राप्त होती थी। उस सेना के वेतन को स्थान पर भूमि दी जाती थी। उस भूमि से उस सेना के सैनिक अपना निर्वाह करते थे। . __गानोरा का सामन्त मेवाड़ के सोलह प्रधान सामन्तों में एक था। समय की गति से उसका प्रदेश मारवाड़ में मिला लिया गया है और अब उसका राजा मारवाड़ का शासक है इस अवस्था में भी गानोरा के सामन्त की राजभक्ति मेवाड़ के राणा के प्रति इतनी अधिक है कि अभिपेक के समारोह में मारवाड़ के राजा के बदले वह अपने प्राचीन स्वामी राणा को ही आमन्त्रित करता है और राणा के द्वारा असिवन्धन का संस्कार पूरा होता है। राणा के प्रति उसकी जो यह राजभक्ति थी वह मारवाड़ के राजा से छिपी न रह सकी। उस सामन्त से इसका बदला लेने के लिए गानोरा का दुर्ग गिरवा दिया गया। परन्तु उस सामन्त पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा। आज भी उस सामन्त की यह हालत है कि राणा का दूत आकर जव उसे कोई सन्देश देता है तो वह सामन्त वड़े सामन्त के साथ राणा की आज्ञा का पालन करता है। गानोरा के राजपूत स्वाभिमानी हैं और किसी प्रकार की विपद आने पर वे अपनी मातृभूमि की रक्षा करना जानते हैं। उनके पूर्वजों ने भी अनेक अवसरों पर अपनी बहादुरी का 355