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परिचय दिया था। उनका प्रभाव उनकी सन्तान पर भी पड़ा है। कहा जाता है कि उन राजपूतों के पूर्वजों ने मुगल सेना के आक्रमण करने पर संग्राम किया था और उस युद्ध में उन लोगों ने अपनी वीरता का अच्छा प्रमाण दिया था। ___यह बात सही है कि आजकल गानोरा का प्रदेश मेवाड़ राज्य से अलग है। लेकिन जव कभी उसका सामन्त राणा के दरबार में आता है तो उसका उचित और आवश्यक सम्मान किया जाता है। मेवाड़ के राज्य में जब कोई उत्सव खुशी का अवसर मनाया जाता है तो राणा की तरफ से गानोरा के सामन्त को उपहार भेजा जाता है। लोग इस बात को जानते हैं कि राणा के वंश के साथ वहाँ के सामन्त का गम्भीर सम्बन्ध है और वह सम्बन्ध जातीय रक्त का परिचय देता है। इसीलिए मेवाड़ के राणा के प्रति उसका अधिक आकर्षण है और उसको भी राणा की तरफ से सम्मान मिलता है। जन-साधारण में उस सामन्त को लोग मेवाड़ का भतीजा कहते हैं। गानोरा के सामन्त ने मुझसे मिलकर बहुत सम्मान मेरे प्रति प्रकट किया। इसके साथ ही गानोरा चलने के लिए मुझे उसने बड़ी अभिलापा के साथ आमन्त्रित किया। मैं समझता था कि उसके प्रति उसके राजा के भाव अच्छे नहीं हैं। इसलिए उसका निमन्त्रण स्वीकार करने में मैं बड़े असमंजस में पड़ गया। मैं सामन्त का आदर-भाव देखकर उसके निमन्त्रण को स्वीकार करना चाहता था और मैं यह भी नहीं चाहता था कि उस सामन्त के यहाँ जाने के कारण उसका स्वामी यानि मारवाड का राजा असंगत धारणा पैदा करे। बिना किसी कारण के मैं इस प्रकार की परिस्थिति पैदा करूँ, यह मेरी बुद्धिमानी नहीं होगी, इसलिए बहुत कुछ सोच-समझकर मैंने अपने अन्तःकरण में इस सामन्त के यहाँ न जाना ही निश्चित किया। लेकिन सीधे शब्दों में ऐसा नहीं कहा जा सकता था। यह एक स्पष्ट अशिष्टता होती। इसलिए उससे बातें करते हुए और उसके प्रति अपना पूरा सम्मान प्रकट करते हुए मैंने उसके निमन्त्रण को अस्वीकार किया। लेकिन उसकी अन्तरात्मा को किसी प्रकार की ठेस न पहुँचे, इसलिए मैंने मार्ग की थकावट और प्रात:काल की रवानगी का जिक्र करते हुए अत्यन्त शिष्टाचार के साथ उसका निमन्त्रण अस्वीकार कर दिया। इस मौके पर मैने बड़ी नम्रता और शिष्टता से काम लिया। अपनी बड़ी मजबूरी को दिखाकर मैंने सामन्त का निमन्त्रण अस्वीकार किया था। लेकिन मेरा असली भाव उस सामन्त से छिपा न रह सका। मेरा ऐसा ख्याल है कि वह इस बात को ताड़ गया कि उसके इतने आग्रह करने पर भी मैंने उसके निमन्त्रण को किसलिए नामन्जूर कर दिया है। अपने निर्णय के अनुसार प्रात:काल मैंने अपनी यात्रा आरम्भ की। साथ के सभी लोग प्रसन्नतापूर्वक आगे की तरफ रवाना हुए। आज की यात्रा लम्बी नहीं थी और अन्त में दो मील की दूरी पर मारवाड के मैदान थे। हम लोगों ने तेजी के साथ चलकर उस मार्ग को पार करने की कोशिश की। सर्दी अधिक थी और अब जिस मार्ग पर हम लोग चल रहे थे, वहाँ का वातावरण बदल गया था। जिसके कारण रास्ते में चलते हुए हम लोगों को बड़ी तकलीफों का सामना करना पड रहा था। उन कठिनाइयो के समय हम लोगों के मुख से इतना ही निकलता था : "आखिरकार ये मारवाड़ के मैदान हैं।" 356