पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३६६

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अगर उन लोगो के वैवाहिक सम्बन्ध पहाड़ो पर रहने वाले चूंन्डावतों और गोगुन्दा के झाला लोगों में ही होते तो उनकी संतान उस अवनति से कभी वच न सकती। लेकिन वैवाहिक सम्बन्धों ने उन खरावियों से उनकी संतान की बड़ी रक्षा की है। हमें मालूम हुआ है उन सीसोदिया लोगों के वैवाहिक सम्बन्ध गोड़वाड़ा के राठौरों, हाड़ौती के चौहानों और दूसर स्थानो के राजपूतों के साथ होते रहते हैं। इसलिए वहाँ की जलवायु के दूषित प्रभाव से उनकी संतान बहुत कुछ सुरक्षित रहती है। गानोरा का सामन्त मुझसे फिर मिलने के लिए आया था। इस बार भी वह उसी सम्मान के साथ मुझसे मिला, जिस प्रकार पहले मिल चुका था। इस बार की भेट में भी उसने मुझसे बहुत-सी बाते की और फिर चला गया। गानोरा के इस सामन्त में भी मुझे उसी प्रकार की नम्रता, शिष्टता और व्यवहार कुशलता मिली, जिस प्रकार मनुष्य के इन गुणों को राजस्थान के दूसरे सामन्तो में मैंने पाया था। जिन लोगों को इन सामन्तो के साथ बातचीत और व्यवहार करने का मौका मिला है, वे निश्चय ही उनकी प्रशसा करेंगे। मैं केवल गानोरा के सामन्त की ही नहीं, बल्कि राजस्थान के समस्त सामन्तों की प्रशंसा करता हूँ। यह बात सही है कि वे सब के सब पूरे तौर पर स्वाभिमानी हैं और अपने प्राचीन गौरव पर गर्व करते हैं। लेकिन वे व्यवहार करना भी जानते है और दूसरो का सम्मान करने मे वे अपने जिन गुणों का प्रदर्शन करते हैं, उनकी प्रत्येक अवस्था मे प्रशसा की जानी चाहिए। इसमें जरा भी अतिश्योक्ति नहीं है। 28 अक्टूबर-आज बहुत सवेरे हम लोगो ने अपनी यात्रा आरम्भ कर दी। रवाना होने के समय ठाकुर ने अपने एक विश्वासी अनुचर को हम लोगों के साथ रवाना किया। हम लोग अरावली की शिखर माला को पार कर रहे थे। लेकिन उसके ऊँचे से ऊँचे पहाड़ों से हमारी दृष्टि को कोई बाधा नहीं पहुँचती थी और अपने रास्ते मे चलते हुए हम लोग गोड़वाड़ा की उपजाऊ भूमि को दूर तक देख रहे थे। इस समय हम लोग चलते हुए गानोरा के बहुत पास पहुँच गये थे। वहाँ के दुर्ग और महल बहुत अच्छी तरह से हमको दिखायी पड़ रहे थे। अपने रास्ते से उसकी आबादी की बहुत-सी बातों को हमने देखा और समझा। उसके निवासी अधिकांश बहुत साधारण अवस्था मे हमको दिखायी दे रहे थे। उन्हें हमने ध्यानपूर्वक देखा। गानोरा के राजपूतो ने मेवाड के राणा की अधीनता स्वीकार करके अपने प्रदेश को मेवाड राज्य मे मिला दिया था। उससे अप्रसन्न होकर मारवाड़ के राजा भीमसिंह ने गानोरा नगर को अनेक प्रकार से क्षति पहुँचाई थी। आज से वीस वर्ष पहले की यह वात है। राजस्थान में गानोरा एक ऐसा स्थान है, जिस पर अधिकार करने के लिए मेवाड के राणा और मारवाड़ के राजा-दोनो हो आतुर रहा करते है। हम सब लोग जिस समय इस प्रदेश के नदी-नालों, जलाशयों और अनेक प्रकार के सुन्दर वृक्षों से भरे हुए स्थानो को पार कर रहे थे, राणा का दूत हमारे पास आया और हम लोगों से बातचीत करने लगा। उसका नाम कृण्णदास था। वह बातचीत में होशियार और बहुत समझदार था। उसकी वृद्धावस्था में चरित्र की जो सुन्दरता और योग्यता होनी चाहिए वह उसमे पूर्णरूप से थी। मै उसकी योग्यता का बहुत आदर करता हूँ और वह भी इस बात को समझता है कि मेरे हृदय में उसके लिए बहुत ऊँचा स्थान है। मैं उससे पहले से ही परिचित है और उसकी योग्यता तथा प्रतिभा को मानता है। 360