पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३६९

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लेकिन चण्ड चित्तौड़ की तरफ आगे बढ़ा। उसके बड़े लड़के का नाम मंच था। उसने अप पिता का साथ छोड दिया और मण्डोर की तरफ वापस लौटा। रास्ते में उसने सुना कि उसके दोनों भाई मण्डोर की रक्षा करते हुए जोधा के हा से मारे गये हैं और विजयी जोधा ने मण्डोर के दुर्ग पर अपनी विजय का झण्डा गाड़ दिया है अपने दोनों भाइयों के मारे जाने और अपनी सेना के पराजित होने का समाचार पाकर मं रास्ते से ही लौट पड़ा। मण्डोर की सीमा पर जोधा के सैनिकों ने मंच को कैद कर लिया ॐ उसे जान से मार डाला। चण्ड जिस समय अरावली पर्वत के रास्ते से गुजर रहा था, उसने मण्डोर का समार सुना। वह तुरन्त मण्डोर के लिए लौट पड़ा। उसके वहाँ पहुँचने पर जोधा ने उससे भेंट र और उसने राणा का वापस दिया हुआ सन्देश चण्ड को बताया और उसके सामने जोधा राणा का लिखा हुआ कागज दिखाया। इसके बाद जोधा ने चण्ड से कहा कि आप मण्डोर । सीमा का निर्णय कीजिए। जोधा की बात को सुनकर चण्ड सोचने लगा कि प्रकृति ने मण्डोर और मेवाड़ सीमा का निर्णय स्वयं कर दिया है। उसके सिवा और दूसरा कोई निर्णय नहीं हो सकता। च ने प्रकृति के उस निर्णय के अनुसार कहा : "जहाँ तक पीले फूल वाले ऑवले दिखायी देतें वहाँ तक मेवाड़ की सीमा है।" -- . चण्ड के इस निर्णय को सुनकर कवि ने उसको अपनी कविता में कहा :"आँव आँवला मेवाड, बबूल बबूल मारवाड़।" चण्ड को जब मालूम हुआ कि मण्डोर का इलाका जोधा को दे दिया गया है, वह शान्त हो गया। उसका लडका मंच ऑवलों से परिपूर्ण सीमा पर मारा गया था। लेकिन स्थल राणा के अधिकार में आ जाने का दुःख भूल गया। मेवाड़ राज्य के दूसरे राजपूतों को इस बात की प्रसन्नता हुई कि सीमा पर ऑवलों का प्रदेश मेवाड़ राज्य में शामिल कि गया है। मण्डोर में जितने भी पत्थर खुदे मिलते हैं, उन सभी में कवि की वह जनश्रुति प जाती है। खेतों में इस समय जो फसल तैयार हुई थी, वह अमीर खाँ की सेना के द्वारा व कुछ नष्ट हो गयी थी। इन बर्बादियों को वहाँ के रहने वालों के मुख से मैने सुना जिससे र बहुत अफसोस हुआ। यह बात सही है कि इन सभी स्थानों की फसलें लुटेरों और अत्याचानि के द्वारा नष्ट की गयी थी, फिर भी मेवाड राज्य की फसलों की अपेक्षा इन स्थानों की फस अब भी अच्छी थीं। लोगो से बातें करने के बाद इन फसलों के सम्बन्ध में मैंने साफ-स समझने की कोशिश की। क्योकि इन राज्यों की आमदनी का सबसे बड़ा साधन खेती फसले ही हैं। अरावली पहाड से निकलकर जो छोटी-छोटी नदियाँ लूनी नदी के खारे पानी मिलती है, अपनी यात्रा करते हुये उनमे से अनेक नदियो को हम लोगों ने पार किया। मार्ग जो बड़े-बडे ग्राम हमको मिले, वे सभी प्रजा से भरे हुये थे। यहाँ के किसानो को देखकर । मेवाड के किसानो की परिस्थितियों का स्मरण हो आया। इस प्रदेश के किसान मेवाड़ 363