पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३६८

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बढ़ते ही प्रकृति का सम्पूर्ण सौन्दर्य धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है और वबूल के पेड़ तथा जंगली घास दूर तक फैली हुई दिखायी देने लगती है। वहाँ के सभी वृक्ष देखने में सुन्दर नहीं मालूम होते। लेकिन उनके द्वारा उपकार बहुत होता है। ऊँटों के दल के दल उन वृक्षों की पत्तियों को खाकर अपनी भूख मिटाते हैं। वृद्ध दूत कृष्णदास ने मेरी बातों के उत्तर में जो कुछ कहा, उसमें न्याय तो नहीं है, लेकिन उसमें बातचीत की खूबसूरती जरूर है। कृष्णदास को मैं पहले से जानता हूँ कि वह वातचीत करने में प्रभावशाली है। उसने दोनों राज्यों की सीमा का निर्णय करने के लिए पहाड़ को महत्त्व न देकर वृक्षों को महत्त्व दिया, इसका कारण क्या है, इस पर यहाँ कुछ प्रकाश डालना जरूरी है। कृष्णदास ने मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा का निर्णय करते हुए जिस कविता का प्रयोग किया है, वह आज की नहीं बल्कि एक पुरानी कविता है। यह कविता कब कही गयी थी, किस मौके पर कही गयी थी और उसका उद्देश्य क्या था? केवल इतनी ही बात को हम यहाँ पर दिखाना चाहते हैं। पहले कभी एक घटना घटी थी और उसी घटना के सम्बन्ध में वह कविता कही गयी थी। यद्यपि वह घटना कई ग्रन्थों में लिखी हुई मिलती है। वह कविता पुरानी है और बहुत दिनों से जनश्रुति के रूप में वह राजपूताने में चली आ रही है। जिस घटना का हम उल्लेख करना चाहते हैं, वह संक्षेप में इस प्रकार है। चौदहवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में चुन्डावत शाखा के आदि पुरुप चण्ड ने मण्डोर के राजा रणमल को विश्वासवातकता के दण्ड में मार डाला था और उसकी राजधानी तथा राठौर राजपूतों के सम्पूर्ण प्रदेश पर अधिकार कर लिया था। वहाँ पर कई वर्ष तक उसका अधिकार रहा। मण्डोर के राजा के परिवार के लोग अरावली पर्वत की गुफाओं में जाकर रहने लगे थे। मण्डोर के राजा के उत्तराधिकारी ने जो उस समय पहाड़ी स्थान में चला गया था, कभी इस बात का अनुमान नहीं लगाया था कि उसका नाम एक वंश के आदि पुरुपो में माना जायेगा और उसको बहुत सम्मान मिलेगा एवं मण्डोर जोधपुर में मिला लिया जाएगा। मण्डोर प्रदेश जय बहुत दिनों तक मेवाड़ राज्य में शामिल रहा तो दोनों पक्षों ने उसके विवाद को भुला दिया था। मण्डोर राज्य के उत्तराधिकारी जोधा की भेंट एक कवि के साथ हुई। उस कवि ने एक भविष्य वक्ता की हैसियत से कहा : चित्तौड़ को राजमाता के अनुरोध से राणा ने तुमको मण्डोर वापस देने का निर्णय किया है। जोधा को मण्डोर का अधिकार मिलने के सम्बन्ध में दो प्रकार के कथानक पाये जाते हैं। मेवाड़ के इतिहास में लिखा है कि राणा ने दयालू होकर जोधा को मण्डोर राज्य वापस दे दिया। परन्तु मारवाड़ के इतिहास में लिखा है कि जोधा ने युद्ध करके अपने पैतृक राज्य का उद्धार किया। इस प्रकार के दो विरोधी उल्लेख पाये जाते हैं। इन दोनों में सही क्या है, यह नहीं कहा जा सकता। राणा ने मण्डोर के शासक चण्ड को वहाँ से चले जाने के लिए आदेश भेजा था। चण्ड ने राणा का आदेश पाकर अपने वडे लडके के साथ मण्डोर से प्रस्थान किया। जब वह चार मील की दूरी पर निकल गया तो उसको अचानक मण्डोर के ऊपर उजाला दिखायी पड़ा। 362