की ही नहीं हुई, बल्कि संसार की अन्य जातियों में भी यही देखी जाती है। किसी समाज अथवा जाति की श्रेष्ठता उसके किसी एक व्यक्ति तक ही प्रायः सीमित रहती है और उसके बाद वह धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है। इस प्रकार की परिस्थितियाँ किसी एक स्थान में नहीं, बल्कि संसार में सर्वत्र देखी जाती हैं। राजस्थान में जितने श्रेष्ठ पुरुष चौहानों में कवियों के द्वारा माने गये हैं, उनमे भटिण्डा का गोगा नामक चौहान भी बहुत प्रसिद्ध है। जिन दिनों में गजनी का वादशाह महमूद अपनी बड़ी सेना लेकर हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने के लिए आया था, उस समय शूरवीर और स्वाभिमानी गोगा अपने चवालीस लड़को को साथ लेकर उसके साथ युद्ध करने गया था। शत्रु के साथ उसने विकट संग्राम किया था और अपने समस्त पुत्रों के साथ वह उस युद्ध में मारा गया था। विजयी महमूद उसके बाद मरुभूमि से होकर अपनी सेना लिए हुये अजमेर मे पहुँचा और वहाँ पर उसने भयानक आक्रमण किया। अजमेर के चौहान राजपूतों ने गजनी की सेना के साथ भयानक युद्ध किया और महमूट को वायल करके पराजित किया। अभिमानी महमूद को वहाँ से भागना पड़ा। इसके बाद बादशाह महमूद नादोल होकर नाहरवाला और सोमनाथ की तरफ गया। जिस समय वह अपनी विराट सेना के साथ नादोल पहुंचा, उस समय वहाँ के राजा ने आक्रमणकारी सेना के साथ युद्ध किया। नादोल में उसके प्रसिद्ध राजा लाखा के समय की खुदा हुआ मुझे एक शिलालेख मिला। उसमें लिखा हुआ है कि लाखा अजमेर के चौहानो की उस शाखा का आदि पुरुप है, जो अजमेर से यहाँ आयी थी। सन् 983 ईसवी में नादाल अजमेर को कर देता था और वह उसकी अधीनता में था। लाखा ने वहाँ पर जो दुर्ग बनवाया है, वह पश्चिमी शिखर के ऊपर बना हुआ है। यह दुर्ग अत्यन्त सुदृढ़ और प्राचीन काल की तरह के शिल्प के साथ वनवाया गया है। उसमें पर्वत के बहुत ही मजबूत पत्थर लगे हुये हैं। वहाँ पर मुझे एक दूसग शिलालेख मिला है। उसमें सन् 968 खुदा हे उसमे लिखा है कि लाखा मेवाड के राजा भीमसिंह के पूर्वज आइतपुर के शक्तिकुमार का समकालीन है। वह नगर भी सम्भवतः बादशाह महमूद के पिता के द्वारा नष्ट किया गया था। चौहान कवि ने राव लाखा की बहादुरी की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि अनहलवाड़ा राज्य से लाखा को कर मिला करता था और यही अवस्था चित्तोड के राजा की भी थी। वह उसको कर देता था। यहाँ पर महलों, मन्दिरों ओर दुर्गो आदि मे जितने गिरे और टूटे हुए अश दिखायी देते हे, उन सब के सम्बन्ध मे वर्णन करना असम्भव मालूम होता है। यहाँ की बहुत-सी बातो को देखने से यह जाहिर होता है कि यहाँ पर किसी समय जैन धर्म का प्रभाव था। यहाँ पर जेनियो के अन्तिम देवता महावीर का मन्दिर बना हुआ है। वह देखने मे वहुत रमणीक मालूम होता है। इस मन्दिर के गुम्बज की बनावट बहुत प्राचीन काल से बिल्कुल मिलती-जुलती है। उमक शिल्प को देखकर रोम के मन्दिरो के निर्माण की कला का सहज ही स्मरण हो आता है। 365
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३७१
दिखावट