पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३७२

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महावीर के मन्दिर की अनेक वातं प्रशंमा के योग्य हैं। ठमकी शिल्पकारी प्राचीन होने के साथ-साथ इतनी मजबूती के साथ उनके निर्माण के समय हुई थी, जो देखने में आज भी बड़ी खूबसूरत मालूम होती है। उस मन्दिर में जो प्रतिमायें हैं, कहा जाता है कि वे सभी डंद मा वर्ष पहलं नदी से निकाल कर इस मन्दिर में स्थापित की गयी थीं। यहाँ के लोगों का यह भी कहना है कि बादशाह महमूट के आक्रमण के दिनों में वे सब प्रतिमायें उसके डर से नदी में फेंक दी गयी थीं। नादाल की बहुत-सी बातें प्रशंसा के योग्य हैं। वहाँ पर एक जलाशय है। वह बहुत बड़ा है। चने की बावड़ी उसका नाम है। लोगों का कहना है कि एक मुट्ठी चने के दानों की विक्री के धन से यह जलाशय बनवाया गया था। विशाल होने के साथ-साथ यह बावड़ी बहुत गहरी है और उसकं तल में पहुँचने के लिए मजबूत लाल पत्थरों की मीढियाँ बनी हुई हैं। ठस वावड़ी के आस पास की इमारत में भी लाल पत्थर लग हुए हैं। यहाँ पर मुझको इतिहास की कुछ प्राचीन बाने मालूम हुई। संस्कृत में लिखे हुए जो पत्र मुझे वहाँ मिल, मेरे नियुक्त किये हुए संस्कृत जानने वालं कर्मचारियों ने उन पत्रों की नकल की। ताँव पर लिखे हुए दो पत्र भी मुझं मिले। उनमें एक अनलदेव के सम्बन्ध में सम्बत् 1218 में लिखा गया था। उसमें जो लिखा था, उसका अनुवाद इस प्रकार है : विषय- वासना से रहित क्रोध और अहंकार मं पर ज्ञान के भण्डार सर्वशक्तिमान महावीर आपको प्रसन्न रखें।* बहुत प्राचीन काल में चाहान वंश के लोग समुद्र के निकटवर्ती स्थानों में राज्य करते थे और नाटोल वालों का उन पर शासन था। उन लोगों में लोहिया नाम का एक व्यक्ति था। टसक लड़के का नाम बलराज था और बलराज के लड़के का नाम विग्रहपाल था। इसी प्रकार विग्रहपाल के लड़के का नाम महन्द्रपाल औ महेन्द्रपाल के लड़के का नाम अनल था। अनल उन दिनों में पर लिखे हुए चोहाना के प्रधानों का प्रधान था। उसका प्रभाव दूर तक फला हुआ था। अनल के वाला प्रसाद नामक लड़का हुआ। लेकिन वाला प्रसाद के कोई लड़का न होने के कारण उसके छोटे भाई जंत्र गज का वहाँ की प्रधानता का पद मिला। जंत्रराज के पृथ्वीपाल नामक लड़का पैदा हुआ। वह महान्, पराक्रमी आर बुद्धिमान था। उसके कोई पुत्र न होने के कारण उसके छोटे भाई जाल का अधिकार मिला। उसके बाद मानराजा अधिकारी बना। अनलदेव उसका पुत्र था।* मानराजा कुछ दिनों तक चौहाना का प्रधान रहा और वह अपने वश पर शासन करता रहा। इसके बाद उसमें समार के प्रति वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई। संग्मार का जीवन टमका व्यर्थ मालूम होने लगा। उसका विश्वास हो गया कि जीवन में दुःख भागने के सिवा । जैनियों के चीन के प्रचाग्यमाय है। नर्म मावार का नाम लीग अन्तिम समझत मगनराशा का मान के बाद प्रधान बनाया जाना या दरका नङका अनदा देव लाम में बारह पीढी पहले मन 898 ईमी राणा 366