मरुभूमि में एक ही प्रकार का दृश्य देखने को मिलता है और सम्पूर्ण मरुस्थली प्रकृति की शोभा से वंचित रहती है। परन्तु लूनी नदी को पार करने के बाद यह दृश्य बदल जाता है और फिर तरह-तरह के पेड़-पौधे दिखायी देने लगते हैं। 30 अक्टूबर-इक्कीस मील का मार्ग चलने के बाद हम लोग राजस्थान के प्रसिद्ध व्यावसायिक नगर पाली में पहुंच गये। उस नगर के जो दृश्य आँखों के सामने से गुजरे, उनमें वे दृश्य सामने आये, जो उस नगर में होने वाले अत्याचारों की याद दिला रहे थे। किसी समय राजपूतों के दो पक्षों में भयंकर युद्ध इस राज्य में हुआ था, उस समय दोनों पक्ष के लोग पाली नगर पर अधिकार करना चाहते थे। उस नगर के निवासी उस युद्ध से भयभीत हो गये थे और उन लोगों ने अपने नगर की रक्षा के लिए एक मजबूत और ऊँची दीवार अपने नगर के आस-पास खड़ो कर ली थी। कुछ इसी प्रकार का इरादा प्रसिद्ध व्यवसायी नगर भीलवाड़ा की सुरक्षा के लिए भी किया गया था। पाली में जो दीवार खड़ी की गयी थी उसका कुछ हिस्सा अव तक मौजूद है और उसको देखकर इस बात का स्मरण होता है कि यह दीवार पाली के किस भयंकर समय में खड़ी की गयी थी। पाली नगर में दस हजार की संख्या में मनुष्य बसते हैं। बहुत प्राचीन काल से यह नगर वाणिज्य के लिए प्रसिद्ध रहा है और इस राज्य की प्रतिष्ठा के साथ इस नगर का राजनीतिक सम्बन्ध कायम हुआ। प्राचीनकाल में मण्डोर के राजा ने ब्राह्मणों की एक शाखा को दान के रूप में पाली नगर दिया था। उस समय से यह नगर उन ब्राह्मणों के अधिकार में रहा। सन् 1156 ईसवी में मरुभूमि के राठौर वंश का आदि पुरुष सीहा जी जब द्वारिका से गंगा तक यात्रा करके लौटा था तो वह इस पाली नगर में विश्राम करने के लिए ठहरा था। पाली के रहने वाले ब्राह्मणों ने उस समय सीहा जी के आने का लाभ उठाना चाहा और इसलिए उन्होंने अपने प्रतिनिधियों को सीहा जी के पास भेजकर प्रार्थना की कि हम लोगों को पहाड़ी मीणा लोगों से बहुत बड़ा कष्ट मिल रहा है। वे लोग हमेशा इस नगर मे आकर लूट-मार किया करते हैं। सीहा जी ने उन ब्राह्मणो के प्रतिनिधियों की बातें सुनी और उसने पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने का वचन दिया। उसने पहाड़ी मीणा लोगो पर आक्रमण करके उनको नष्ट-भ्रष्ट किया और पाली नगर में उनके द्वारा होने वाले अत्याचारों को सदा के लिए खत्म कर दिया। सीहा जी के द्वारा वहाँ के ब्राह्मणों का वह कष्ट तो दूर हो गया, परन्तु उनका भविष्य पहले से भी अधिक अन्धकारमय हो गया। सीहा जी ने न केवल पहाड़ी मीणा लोगों को पराजित किया वल्कि उनको छिन्न- भिन्न करने के बाद उसने पाली नगर के सभी प्रधान ब्राह्मणों को मार डाला और पाली नगर पर अधिकार कर लिया। सीहा जी ने अपने राज्य विस्तार की अभिलापा से प्रेरित होकर ऐसा किया। किसी भी नगर अथवा प्रदेश की स्वतन्त्रता उसके वाणिज्य-व्यवसाय पर निर्भर होती है। व्यवसाय से राजनीति को बल मिलता है और उसकी स्वाधीनता पर सहज ही शक्ति आक्रमण 369
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३७५
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