पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इस प्रदेश में वाणिज्य की जो चीजें आती हैं, उनकी रक्षा का कार्य चारण और भाट लोगों को करना पड़ता है। ये लोग आम तौर पर कवि होते हैं और अपनी कविताओं के द्वारा राजवंश की प्रशंसा का गाना गाया करते हैं। केवल इसीलिये राज्यों में इन कवियों को प्रधानता दी जाती है और वे पूज्य माने जाते हैं। कोई भी इनको नाराज नहीं करना चाहता। क्योंकि अप्रसन्न होने पर कविता करने का व्यवसाय करने वाले चारण और भाट शाप देने की धमकी दिया करते हैं और उनके शाप से सभी लोग बहुत भयभीत रहते हैं। इन चारण और भाट लोगों का डर अधिक लोगों को रहता है कि प्रत्येक अवस्था में लोग उनको खुश करने की कोशिश करते हैं। यहाँ तक कि लुटेरे लोग, जंगली कोल भील और मरुभूमि के भयानक सराई लोग भी उनके शाप से बहुत डरते हैं। राज्य की तरफ से व्यावसायिक आने जाने वाले माल की रक्षा का कार्य इन लोगों को इसलिए दिया जाता है कि उनके भय से कोई बदमाश और लुटेरा गिरोह माल पर हमला नहीं कर सके। इस कार्य को राज्य में इतनी सफलता के साथ दूसरा कोई नहीं कर सकता, जिस सफलता के साथ ये चारण और भाट लोग कर सकते हैं। इसीलिए राज्य की तरफ से इस कार्य का भार इन्हीं लोगों को हमेशा दिया जाता है। इन चारणों और भाटों की इस शक्ति को सभी लोग जानते हैं और सव का यह विश्वास रहता है कि इनमें किसी के साथ रहने से डर नहीं रहता। इसलिए जिन लोगों को कहीं जाना होता है तो वे अपनी और अपने माल की रक्षा के लिए राज्य के इन संरक्षकों को साथ लेकर चलते हैं। इनकी सहायता से व्यापारी लोग जालौर, साचौर और राधनापुर होकर सुराट एवम् मस्कट द्वीपों मे सुरक्षित पहुँच जाते हैं। दस मील पूर्व की तरफ पुण्य गिरी नामक एक पहाड़ है। उसके शिखर के ऊपर एक मन्दिर बना हुआ है। कहा जाता है कि सौराष्ट्र के पालिताना के एक बौद्ध ने इस मन्दिर को बनवाया था। वह बौद्ध इन्द्रजाल जानता था। लेकिन उसकी इस जानकारी को वही वौद्ध लोग मानते थे जो उस प्रदेश मे अधिक सख्या में रहा करते थे। यहाँ पर एक पुराने मित्र के साथ मेरी भेंट हुई। वह मित्र गफ के नाम से प्रसिद्ध था। वह यहाँ के दक्षिणी-पश्चिमी प्रदेश में रहने वाले सराई कोशा इत्यादि जंगली और पहाड़ी असभ्य लोगों से घोड़े प्राप्त करने के लिए घूम रहा था। 30 अक्टूबर खरेरा 31 अक्टूबर रोहिट 1 नवम्बर-लूनी नदी के उत्तरी किनारे पर सङ्खली नामक एक स्थान है। वह स्थान पाली से दूर हमारी यात्रा के मार्ग मे है। पाली से लेकर लूनी नदी तक तीस मील की दूरी में जो ग्राम बसे हुए हैं वे वहुत टूटी-फूटी दशा मे हैं और उनमे कोई भी ऐसी बात नहीं है जो भ्रमण करने वाले को अपनी ओर आकर्पित करती हो। इस दशा में खरैरा नामक स्थान पर हम लोगो ने मुकाम किया। खरेरा में नमक बनाने के दो जलाशय है। उनमे बहुत सा नमक तैयार होता है। नमक खारा होता है इसलिए उस स्थान का नाम खरैरा पड़ा है। यहाँ पर खरैरा और रोहिट पाली नगर +