अध्याय-51 लूट की सम्पत्ति से जैसलमेर का निर्माण भाटी राज्य के विनाश के कुछ वर्षों के बाद महेवा के सामन्त मालवी जी राठौर के लड़के जगमल ने जैसलमेर की राजधानी पर अधिकार करने का निश्चय किया और अपनी सेना के साथ सात सौ गाड़ियों पर रसद और दूसरी सामग्री को लादकर वह जैसलमेर पहुँच गया। जब यह समाचार भाटी राजवंश के जसहड के दोनों पुत्रो-दूदा और तिलोकसी ने सुना कि राठौर वंश के राजपूत हमारी धानी पर अधिकार करने के लिए आ गये हैं तो उन्होंने अपने आदमियों को संगठित करके राठौरों का सामना करने की तैयारी की और वे जैसलमेर में आ गये। भाटी लोगों ने जैसलमेर पहुँचकर राठौरों की सम्पूर्ण सम्पत्ति लूट ली और उनको मारकर जैसलमेर से भगा दिया। राठौरो के चले जाने के बाद दूदा ने जैसलमेर की राजधानी अधिकार मे ले ली। वहाँ की प्रजा ने इस पर सन्तोप प्रकट किया और उसे अपना राजा मानकर उसे रावल की उपाधि दी। दूदा ने जैसलमेर के राज्य सिंहासन पर बैठकर वहाँ के टूटे हुए मकानों के निर्माण का कार्य आरम्भ किया और थोड़े ही दिनों के बाद जैसलमेर की परिस्थितियाँ बदल गयीं। रावल दूदा के पॉच बेटे पैदा हुए। उसका भाई तिलोकसी अपने पराक्रम के लिए बहुत प्रसिद्ध हुआ। उसने बलोचियों, मुसलमानों, मंगोलियों तथा देवरा जाति के लोगों और आबू पर्वत तथा जालौर के सोनगढ़ो को जीतकर अपनी शक्तियों का परिचय दिया। अनेक जातियों को लगातार पराजित करने के बाद उसका साहस बढ़ गया और उसने अपनी सेना लेकर अजमेर की तरफ की यात्रा की। दिल्ली के बादशाह फीरोजशाह के बहुत से श्रेष्ठ घोड़े अजमेर से अनासागर स्नान कराने के लिए लाये गये थे। तिलोकसी ने आक्रमण करके वादशाह के समस्त घोड़े छीन लिए और वह जैसलमेर लौट आया। बादशाह फीरोजशाह ने जब यह घटना सुनी तो उसने जैसलमेर पर आक्रमण करने के लिए अपनी एक फौज रवाना की। बादशाह की सेना के साथ युद्ध करने की क्षमता दूदा मे न थी। इसलिए दिल्ली की इस फौज के पहुंचते ही जैसलमेर पर भयानक विपद आ गयी। जब दूदा ने अपनी रक्षा का कोई उपाय न देखा तो उसने अपने यहाँ की सोलह हजार रानियो और दूसरी ललनाओं को अग्नि मे जला कर अपने सत्रह सौ आदमियो के साथ युद्ध में प्राण दे दिये। उसने जैसलमेर के सिंहासन पर बैठकर दस वर्ष तक राज्य किया। सम्वत् 1362 सन् 1306 ईसवी मे अपने परिवार के लोगो के साथ दूदा युद्ध मे मारा गया। उन्हीं दिनो मे नवाब महबूबखों की मृत्यु हो जाने के कारण रत्नसी के दोनों राजकुमारो की रक्षा का भार महबूवखॉ के दोनों लडको गाजी खाँ और जुलफकार खाँ पर पड़ा। इन्ही 32
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३८
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