दिनों मे कानड छिपकर एक वार जैसलमेर चला आया और उसके बड़े भाई घडसी ने पश्चिम के महेवा में जाकर राठौर राजकुमारी विमला के साथ विवाह किया। जिन दिनो मे घडसी अपने विवाह की धुन में था, उसके सम्बन्धी सोनिगदेव ने आकर उससे भेंट की। सोनिगदेव शरीर से लम्बा-चौड़ा और शक्तिशाली था। विवाह के बाद घडसी अपने साथ सोनिगदेव को दिल्ली ले गया। भीमकाय सोनिगदेव को देखकर दिल्ली के बादशाह ने आश्चर्य किया और उसने उसकी शक्ति की परीक्षा लेने का विचार किया। खुरासान के बादशाह ने किसी समय दिल्ली के बादशाह को सुदृढ़ लोहे का बना हुआ एक धनुष भेंट में दिया था। बादशाह ने उस धनुष को मँगाकर सोनिगदेव के हाथों में दिया और उस धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। यह सुनकर सोनिगदेव ने धनुप पर बाण न केवल चढ़ाने की कोशिश की वल्कि उसने उसको यहाँ तक खीचा कि वह लोहे का धनुष टूट गया। यह देखकर बादशाह उससे बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसकी बहुत प्रशंसा की। इन्हीं दिनों में दिल्ली पर तैमूर बादशाह ने आक्रमण किया। उस अवसर पर बादशाह की तरफ से घडसी ने अपनी बहादुरी का ऐसा परिचय दिया कि जिससे तैमूरशाह का सम्पूर्ण साहस शिथिल पड़ गया और वह दिल्ली से लौट गया। बादशाह ने घडसी के साहस और पराक्रम को देखकर प्रसन्नता प्रकट की और पुरस्कार के रूप मे जैसलमेर के शासन का अधिकार उसने उसको दे दिया। घडसी ने जैसलमेर का अधिकार प्राप्त करके वहाँ पर अनेक प्रकार के सुधार किये और अपनी शक्तियो का निर्माण किया। घडसी ने इन दिनो में बड़ी बुद्धिमानी से काम किया। उसने अपने साहस और पुरुषार्थ के पुरस्कार में जैसलमेर का अधिकार प्राप्त किया था। उसके वंश के जो लोग वहाँ पर रहते थे, उन सब को बुलाकर उसने बातचीत की और महेवा के राजा जगमल की सहायता से उसने अपनी एक सेना तैयार की। उसने जैसलमेर और उसके आस-पास शांति तथा सुव्यवस्था कायम करने की चेष्टा की। हमीर और उसके पक्ष के लोगो ने सम्मान देने के साथ-साथ उसको राजा के रूप में स्वीकार किया। परन्तु जसहड के लडके ने इसको मानने से इन्कार कर दिया। देवराज ने मंदोर के राजा राणा रूपडा की लड़की के साथ विवाह किया। उस राजकुमारी से देवराज के केहर नाम का एक बालक पैदा हुआ था। वादशाह की सेना के द्वारा जैसलमेर के घेरे जाने पर केहर को उसकी माता के साथ मंदोर भेज दिया गया। बारह वर्ष की अवस्था में केहर अपने ननिहाल में ग्वालो के साथ जंगल में जाता और अपनी अवस्था के लडकों के साथ खेला करता। एक दिन की बात है कि केहर जंगल मे खेलते हुए एक स्थान पर लेट गया, वहाँ पर एक सॉप की बांबी थी। केहर को नींद आ गयी। उसी समय वाँबी से एक सॉप निकला और केहर के मस्तक पर पहुँच कर फन की छाया करके वह बैठा रहा उसी रास्ते से उस समय एक चारण निकला। उसने अपने नेत्रों से उस सुन्दर बालक के मस्तक पर फन फैलाये हुए सॉप को देखा। उसने मन्डोर के राजा से जाकर यह घटना बतायी। उसंक सुनकर राणा तुरन्त रवाना हुआ और वहाँ पहुँचने पर उसने देखा कि दौहित्र के मस्तक पर 33
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३९
दिखावट