पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३८०

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14 1 यह कहकर मैंने पाइमा की तरफ देखा और उससे फिर कहा : अगर आपको मेरा निर्णय मंजूर है तो लिखकर दीजिए और अगर मंजूर नहीं है तो मेज पर यह कटार रखा हुआ है। आप शौक से आत्म-हत्या कर सकते हैं।" पाइमा मेरी इन वातों को चुपचाप सुनता रहा। क्षण-भर उसके कुछ न बोलने पर मैंने फिर कहा : "राणा अमर सिंह ने भाटों के आत्म-हत्या करने पर उस वंश के वाकी भाटों को राज्य से निकल जाने का दण्ड दिया था। राणा अमर सिंह का वह आदेश आज भी राज्य में कायम है। उसके साथ-साथ मैं इतना और इस अपराध में दण्ड की मात्रा बढ़ा दूंगा कि यदि आपने मेरे इस निर्णय को न माना तो व्यावसायिक माल को ले जाने के लिए जितने छकड़े आपके पास हैं, वे सब छीन लिये जाए और आपको देश से निकाल दिया जाए। ऐसा करने के लिए में राणा भीमसिंह से अनुरोध करूंगा।" मेरे इस निर्णय को सुनकर पाइमा काँप उठा। उसने बुद्धिमानी से काम लिया और विना किसी प्रकार की रुकावट के उसने मेरे निर्णय को मन्जूर कर लिया। इसके बाद राणा ने उसको भूमानिया में रहने की आज्ञा दे दी और उसके पाँच सौ वैलो का कर माफ कर दिया। राणा भीमसिंह ने इसके बाद पाइमा को उसके भूमानिया प्रदेश का प्रधान नियुक्त किया और उसको बहुमूल्य वस्त्रों के साथ सोने के वाजूवन्द उपहार में दिये। 2 नवम्बर-दस मील का मार्ग पार करके हम सब लोग झालामन्ड नामक स्थान पर पहुंचे। जोधपुर वहाँ से वहुत थोड़े फासले पर है। इसलिये यहाँ पर रुक जाने का हमारा एक विशेष अभिप्राय है। उसके सम्बन्ध में हमें कुछ निर्णय कर लेना था। इसलिए इस स्थान पर हमको रुकना पड़ा। पश्चिमी देशों में किसी राज्य की ओर से आने वाले प्रतिनिधि के साथ जो व्यवहार किया जाता है, वह उन देशों तक ही कदाचित् सीमित हो सकता है। मरुभूमि के राज-दरवार में अंग्रेज प्रतिनिधि के साथ किस प्रकार आदर-सम्मान होगा और किस प्रकार होना चाहिए, इसको समझ बूझकर हमें आगे कदम बढ़ाना चाहिये। राजा का भेजा हुआ जो प्रतिनिधि हमारे पास आवेगा, उसका किस प्रकार हमें स्वागत करना चाहिए, यह भी हमें समझ लेने की जरूरत है। ऐसे अवसरों पर राज-दरवारों में प्राचीन काल की निर्धारित प्रथाओं का ही पालन होता है। शायद जोधपुर में भी वैसा ही किया जाए। अथवा किसी दूसरे प्रकार का स्वागत हो, यह भी नहीं कहा जा सकता। किसी भी दशा में हमें कुछ निर्णय कर लेने की आवश्यकता है। इसलिए कि अंग्रेजी शासन की परिस्थिति विल्कुल भिन्न है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का गवर्नर एक व्यावसायिक संस्था के अनुचर के रूप में माना जाता है। इसलिए उसके एक प्रतिनिधि के साथ यहाँ के एक राजा का व्यवहार किस प्रकार होगा, इसका अनुमान नहीं किया जा सकता इसलिए जब तक इसका निर्णय न हो अथवा वह स्वागत हमारे सामने न आवे, उस समय तक हम इस बात को नहीं समझ सकते कि हमें भी किस प्रकार से राजा के प्रतिनिधि का स्वागत करना होगा। सिन्धु नदी से लेकर समुद्र तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन है। लेकिन यह कम्पनी एक शासक के रूप में नहीं, बल्कि एक व्यावसायिक संस्था के रूप में प्रसिद्ध है। 374