अन्यथा वह इस योग्य न था। उसने अपने जीवन में अनेक ऐसे कार्य किये थे, जिनके लिए वह सभी की प्रशंसा का अधिकारी था। परवतसर के युद्ध में पराजित होने के कारण जब मारवाड़ के राजा ने अपनी तलवार से आत्म-हत्या करने की कोशिश की थी, उस समय इसी सामन्त सुरतान सिंह ने उसके प्राणों की रक्षा की थी और जिस समय कई राज्यों की विशाल सेना ने आक्रमण करने के लिए मारवाड़ को घेर लिया था, उस समय जिन चार सामन्तों ने मारवाड़ के राजा का साथ दिया था, उनमें एक सामन्त सुरतान सिंह भी था। सन् 1803 ईसवी में जब यह शक्तिशाली सेना मारवाड़ का विध्वंस और विनाश करके उसकी अपरिमित सम्पति लूटकर ले गयी, उस समय जिन चार सामन्तों ने आक्रमणकारी सेना पर हमला करके उसकी लूटी हुई सम्पत्ति को छीन लिया था उनमें एक सामन्त-सुरतान सिंह भी था। उस समय इन चारों सामन्तों ने भयानक युद्ध करके और अपने प्राणों का भय.छोड़कर भीपण रूप में शत्रुओं का संहार किया था।* सुरतान सिंह के जीवन में अच्छाइयाँ अनेक थीं। इसलिए उसकी मृत्यु पर समस्त राजस्थान में शोक मनाया गया। सुरतान सिंह चरित्रवान और एक वीर पुरुप था। उसके जीवन के गुणों की प्रशंसा उसके विरोधी भी करते थे। सच बात यह है कि जिसके विरोधी प्रशंसा करें, वही मनुष्य वास्तव में प्रशंसा के योग्य है। सुरतान सिंह इसी प्रकार के आदमियों में था। मैंने जब जोधपुर की यात्रा की थी, उसके आठ महीने के बाद उसकी मृत्यु का समाचार मुझे मिला था। जिस पत्र में उसके मरने का समाचार आया था, वह निम्नलिखित है : जोधपुर 2 आपाढ़ 28 जून सन् 1820 जेठ महीने के अन्तिम दिन 26 जून को सूर्य निकलने के कुछ पहले अलीगोल और समस्त सामन्तो की सेना अर्थात् अस्सी हजार सैनिकों की सेना को सुरतान सिंह के ऊपर आक्रमण करने की आजा दी गयी।* वह सेना सुरतान सिंह के निवास स्थान को घेर कर तीन घड़ी तक वन्दूकों से गोलियाँ चलाती रही। उसके बाद की सुरतान सिंह अपने भाई भूरसिंह और परिवार तथा वंश के सभी लोगों के साथ हाथों में तलवारें लिए हुए निकला और उसने आक्रमण करके शत्रुओ से भयानक युद्ध किया। लेकिन उसके ऊपर यह आक्रमण उसके राजा की तरफ से हुआ था और राजा के पक्ष मे बहुत सी सेना थी। इसलिए दोनो भाई बड़ी देर तक युद्ध करने के वाद मारे गये। उन दोनों भाइयों के साथ नागो जी और साथ के चालीस शूरवीरों का भी अन्त हुआ। उनके सिवा सुरतान सिह के चालीस वंशज युद्ध करते हुए घायल हुए। केवल अस्सी राजपूत जो सुरतान सिंह की तरफ से युद्ध करने आये थे, बाकी बचे। वे निमाज के सामने से युद्ध छोडकर भाग गये। राजा की सेना मे चालीस सैनिक जान से मारे गये और एक सौ सैनिक युद्ध करते हुए घायल हुए। इस लडाई में नगर के बीस* आदमी भी मारे गये।
पिछले पृष्ठ मे यह लिखा जा चुका है कि राणा भीमसिंह की लडकी के साथ विवाह करने के लिए यह संग्राम हुआ था और युद्ध म अनेक प्रकार की राजनीतिक चारों से काम लिया गया था। उसका वर्णन पहले किया जा चुका है। यहाँ पर उसको सोप में लिखा गया है। अलीगोल का अभिप्राय है.हला सेनाय । स्वतन्त्र रुहेला सैनिकों का संगठन योरोप की कोजों की तरह होता है। रुहेला लोग अत्यन्त स्वार्थी होते हैं। उन राजपूतों ने निमाज नगर की रक्षा बड़ी बहादुरी के साथ कई मास तक की थी। लेकिन अन्त में उनको युद्ध क्षेत्र से भाग जाना पड़ा। 377