पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३९१

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सम्पत्ति से बने थे, गुरुदेव के बहुत-से शिष्य लोग रहा करते थे, और राज्य का सुख भोगते हुए मनमानी करते थे। यह हालत उन मन्दिरों और धर्मशालाओ की बहुत दिनों तक चलती रही। कोई उसमे दखल नहीं दे सकता था। न्याय किसी भी दशा में होकर रहता है। गुरुदेव देवनाथ के विपयों का प्रभाव राज्य के लोगों पर से नष्ट होने लगा और सभी लोग इन सब बातों का कारण देवनाथ को समझने लगे। धीरे-धीरे राज्य के निवासियों में असंतोप बढ़ा और वे छिपे तौर पर गुरुदेव से असंतुष्ट हो गये। इस असन्तोप में गुरुदेव के प्रति लोगों में शत्रुता का भाव पैदा हुआ। इसके साथ-साथ लोगों में इस बात का विश्वास भी बढ़ने लगा कि राजा ने इस गुरुदेव की सहायता से राजसिंहासन प्राप्त किया है इसलिये राजा गुरुदेव की अधीनता में चल रहा है। वह राज्य में होने वाले इस प्रकार के अन्यायो में कभी भी सुधार करने का साहस नहीं कर सकता। इस प्रकार की भावनाये राज्य के न केवल निवासियो में पैदा हुई, बल्कि इससे राज्य के सामन्त लोग भी चिन्तित और पीड़ित रहने लगे। गुरुदेव के आधिपत्य के दिनों मे सामन्तो के अधिकार धीरे-धीरे नष्ट होने लगे। राजा मानसिंह के ऊपर सामन्तों का प्रभाव छिन्न-भिन्न हो गया। राज्य की इस परिस्थिति को सामन्तो ने अपनी दुरवस्था समझी और उसे बदलने के लिये वे सभी प्रकार के कार्य करने की तैयारी करने लगे। वे समझते थे कि इन दिनों मे जो कुछ राज्य में रहा है, वह अन्याय और अपराध है। इसे बदलने के लिए अगर जल्दी कोशिश नहीं कि जाती तो उसका परिणाम भयानक है। गुरुदेव को राज्य की इस बिगड़ती हुई परिस्थिति का कुछ पता न था। उसको इसकी कोई परवाह भी न थी। राजा मानसिंह पूरे तौर पर उसके अधिकार मे था। राज्य की सम्पत्ति और आमदनी का प्रयोग वह बहुत मनमाने तरीके से करता था। राज्य के व्यापारियों और सम्पत्तिवानो का विश्वास गुरुदेव और उसके शिष्यों पर था। वे लोग इन धर्माचारियो के विरुद्ध सोचने का कभी साहस न कर सकते थे। इस का फल यह हुआ कि राज्य के खजाने के सिवा धनिकों के पास जो सम्पत्ति थी वह गुरुदेव के पास धीरे-धीरे पहुंच रही थी और देवनाथ के नेत्रों में उस सम्पत्ति का महत्व कुए और तालावों के जल से अधिक न था। मारवाड़ राज्य के सामन्तो का अधिकार नष्ट हो गया था। इसलिये वे लोग गुरुदेव और उसके शिष्यों के कार्यो को पूरे तौर पर अनाचार समझ रहे थे। परन्तु राजा मानसिंह के विरोध के कारण वे लोग कुछ करने का साहस न करते थे। वे समझते थे कि गुरुदेव का विरोध राजा मानसिह का विरोध है। क्योकि उसके दिल और दिमाग पर देवनाथ ने पूरा अधिकार कर रखा है। इसलिये चिन्तित होने पर भी राज्य के सामन्त चुप थे। देवनाथ का पूरा आधिपत्य राज्य पर चल रहा था। उसके अधिकार में नौकरों की संख्या इतनी अधिक थी, जितनी बड़ी संख्या सब सामन्तो के नौकरों को मिलाने पर भी नहीं होती थी। मारवाड का राजा मानसिंह जिस ध्वजा और झण्डे के साथ निकला करता था, ठीक उसी प्रकार का वैभव गुरुदेव के साथ चलता था। वह राज्य के सामन्तो को अपनी अधीनता मे समझता था और सामन्त लोग भी उसी प्रकार उसको हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे जिस प्रकार वे सब विनम्र भाव से अपने राजा का अभिवादन करते हुए अपनी अधीनता का प्रदर्शन 385