पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शासन की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद राजा मानसिंह ने समझा कि नियन्त्रणहीन राज्य सामन्तों की अराजकता के कारण है। इसलिये उसने बड़ी राजनीति से काम किया। उसने राज्य के सामन्तों के साथ बड़ी सहानुभूति प्रकट की। उसके व्यवहारों को देखकर सभी सामन्त उसका विश्वास करने लगे। दोनो तरफ से बढ़ते हुए विश्वासों के कारण यह मालूम होने लगा कि सामन्तों के साथ राजा मानसिंह का जो व्यवहार चल रहा है उससे बहुत थोड़े दिनों मे राज्य की उन्नति हो जाएगी। अपने राजा के प्रति वहाँ के सामन्तों में इसी प्रकार का विश्वास पैदा हो गया। राजा मानसिंह ने सामन्तों की स्वतन्त्रता पर कभी कोई आलोचना न की। इस तरह की बातों को देखकर मालूम होने लगा कि राजा मानसिंह ने अपने सामन्तों को सभी प्रकार के अधिकार दे रखे हैं। जव अच्छे दिन आते हैं तो परिस्थितियाँ अपने आप अनुकूल होने लगती हैं और अच्छा अवसर बिना किसी चेष्टा के सामने आ जाता है। पोकरण के सामन्त सालिम सिंह और प्रधान मत्री अक्षयचन्द को नष्ट करने के लिए योधराज ने अपनी शक्तियों को तैयार किया। इस सघर्प को बढ़ते हुए देखकर मानसिंह बहुत प्रसन्न हुआ। वह समझता था कि इस झगड़े का लाभ अपने लिये सभी प्रकार अच्छा होगा। लेकिन उसका जो भीतरी उद्देश्य था, सालिमसिंह उसे समझ न सका। वह मानसिंह पर विश्वास करता रहा। छत्रसिंह के शासनकाल में अक्षय चन्द मंत्री था। उन दिनों में मारवाड राज्य का शासन उसी के हाथ में था। छत्रसिंह कभी योग्य न था और उसकी अयोग्यता के कारण ही अक्षय चन्द ने सभी प्रकार के अधिकार अपने हाथो में कर रखे थे। राजा मानसिंह इस बात को समझता था कि राज्य की सारी परिस्थितियों की जानकारी सबसे अधिक अक्षय चन्द को है, इसलिये उसने अक्षय चन्द की इस जानकारी का लाभ उठाने की चेष्टा की। परन्तु उसके उन्माद के दिनों में राज्य के जिन पदाधिकारियो ने अधिक अन्याय किया था और अनैतिक रूप से राज्य की सम्पत्ति अपने अधिकार में कर ली थी, राजा मानसिंह ने उन सबकी सम्पत्तियों को छीनकर अपने अधिकार मे करना आरम्भ कर दिया। राजा मानसिंह ने इन दिनों में अपनी एक अनोखी राजनीति से काम लिया। उसने निर्णय किया कि मेरे उन्माद के दिनों में जिन्होंने अपने स्वार्थो के लिए राज्य और प्रजा का सर्वनाश किया है, उनकी हत्या करने की अपेक्षा यह ज्यादा अच्छा होगा कि उनकी उस सम्पूर्ण सम्पत्ति को छीन लिया जाये, जो उन्होने अपने अन्यायपूर्ण कार्यो से अपने अधिकार में कर ली है। अक्षय चन्द राजनीतिज्ञ और दूरदर्शी था। वह राजा मानसिह की इस चाल को समझ रहा था। अंग्रेजों के साथ राजा मानसिंह की मित्रता हो जाने के कारण वह बहुत भयभीत होने लगा था। उसने अग्रेजों की तरफ से राजा मानसिंह को बहुत भड़काने की कोशिश की। राजा मानसिंह भी दिखावे मे अक्षयचन्द की हॉ मे हाँ मिलाता रहा। इसका फल यह हुआ कि अक्षयचन्द और उसके आदमी राजा मानसिंह के चंगुल मे आ गये। मानसिह ने बड़ी बुद्धिमानी के साथ यह सब किया। इन दिनों मे मारवाड़ राज्य की अवस्था बडी भयानक हो रही थी। किसी पर किसी का विश्वास न था। सम्पूर्ण राज्य मे राजनीतिक पडयंत्र फैले हुए थे। राजा मानसिंह अपने 390