1 राजा छत्रसिंह की इस आकस्मिक मृत्यु का क्या कारण हुआ, निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। दूसरे लोगों के मत भी इस विषय में भिन्न-भिन्न हैं। कुछ लोगों का कहना है कि आचरण की खरावी से उसका शरीर बहुत निर्वल पड़ गया था। इसीलिये असमय उसकी मृत्यु हुई। कुछ लोगों का कहना है कि आचरण दुर्बलता में उसने एक राजपूत लड़की का सतीत्व नष्ट करना चाहा था। उसके इस अपराध के कारण उस लड़की के पिता ने अपनी तलवार से उसको मार डाला। सही वात क्या है, इसको प्रमाणिक तौर पर कहने के लिये कुछ साधन नहीं है। जो कुछ भी हो। छत्रसिंह की मृत्यु हो गयी। उसके मरने के बाद मारवाड़ राज्य का पतन भयानक रूप से आरम्भ हुआ और राज्य में चारों तरफ अन्याय होने लगा। राज्य की बढ़ती हुई दुरवस्था को देखकर सामन्त लोग बहुत चिन्तित हुये, बहुत कुछ सोचने-विचारने के बाद भी उनकी समझ में न आया कि उस दशा में क्या होना चाहिये। अन्त में सभी लोगों ने निश्चय किया कि मानसिंह के पास जाकर राज्य की सब हालत कही जाये और उसके ऊपर जोर डाला जाये कि वह फिर से राज्य का शासन हाथ में ले। इन दिनों में मैं विभिन्न प्रकार के लोगों से मारवाड़ राज्य के सम्बन्ध में बातें करता रहा। मैं जल्दी से इस बात का निर्णय करने में असमर्थ ही रहा था कि इस राज्य की इस बर्बादी का कारण क्या है। मुझे बहुत से आदमियों के द्वारा अनेक प्रकार की बातें सुनने को मिलीं। उन सबको सुनने के बाद मैं तो इसी नतीजे पर आया हूँ कि मारवाड राज्य मे किसी योग्य शासक के न होने के कारण उसकी यह दुरवस्था हो रही थी। इसके सिवा और कोई बात न थी। राजा मानसिंह की दशा भी अभी तक अच्छी न थी। मानसिंह के उन्माद का रोग अभी तक कुछ कम न हुआ था। सिर और दाढ़ी के बाल भी उसने वहुत दिनों से नहीं वनवाये थे। इसलिये उसकी आकृति पागलों की सी हो गयी थी। परन्तु उन्माद के इन दिनों में राजा मानसिंह को अपने जीवन की रक्षा का बहुत ध्यान था। राजा छत्रसिंह के समय जो लोग राज्य के ऊँचे पदों पर थे उनके सेवक मानसिंह के पास जाकर उसकी सेवा करते थे। कहा जाता है कि उन सेवकों ने राजा मानसिंह को विप देने के लिए कई बार कोशिश की थी। लेकिन उसमे उन लोगो को सफलता नहीं मिली। यह जानकर बहुत से लोग इस बात का विश्वास करने लगे थे कि राजा मानसिंह की जिन्दगी के दिन अभी बाकी हैं, इसलिये कोई उसे अभी तक विप नहीं दे सका। उन्माद के दिनों में भी उसके जीवित रहने का कारण यह था कि वह स्वयं अपने सम्बन्ध मे बहुत सचेत रहता था और किसी के हाथ का कोई भी भोजन वह न करता था। इसमे सबसे बड़ा सहारा यह था कि राजा मानसिंह का एक बहुत विश्वासी नौकर था, वह मानसिंह का इतना अधिक विश्वासी और भक्त था कि उसने अब तक राजा का साथ नही छोडा था और वह अपना लाया हुआ भोजन ही राजा को खाने देता था। छत्रसिंह के मरने के बाद राजा मानसिंह मे बहुत परिवर्तन हुआ। उसका उन्माद जाता रहा। उसकी समझ में आ गया कि राज्य के हित के लिए उसकी तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। अंग्रेजी सरकार ने राजा मानसिंह की सहायता की ओर उसके शत्रुओ का पूर्ण रूप से दमन हुआ। 389
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