पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४०३

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उन्हीं दिनों में यह मन्दिर बना था और ये मूर्तियाँ इस मन्दिर में स्थापित की गयी थीं। नागदा नाम की जो यहां पर एक छोटी सी नदी बहती है, उसके सम्बन्ध में भी यहाँ पर एक जनश्रुति है। लेकिन यहाँ के लोग उस श्रुति को बड़े विस्तार में कहते हैं इसीलिए वह लिखी नहीं जा सकती। यहाँ पर एक झरना है, उसके पास ही पृथ्वीराज और उसकी स्त्री ताराबाई का स्मारक बना हुआ है। उस मार्ग से कुछ दूरी पर चलने से एक विस्तृत मैदान मिलता है। उस मैदान को चारों ओर से घेरे हुए एक मजबूत दीवार बनी हुई है। हम लोग जब उस विस्तृत मैदान में पहुँचे तो पहाड के ऊपर एक विशाल कमरा दिखाई पड़ा। जैनियों के मन्दिर की तरह उस कमरे में बहुत-से स्तम्भ बने हुए हैं और उन स्तम्भों के ऊपर कमरे की मजबूत छत बनी हुई है। उस कमरे के भीतर मारवाड़ शूरवीर राजाओं की प्रतिमायें लगी हुई हैं। प्रत्येक मूर्ति अपने अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित और घोड़े पर चढ़ी हुई वनवाई गयी हैं। इन मूर्तियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे पत्थरों को काटकर बनवायी गयी हैं। उनकी ऊँचाई एक मनुष्य की ऊँचाई से कुछ अधिक है। इन मूर्तियों को बनाने में यद्यपि किसी प्रकार की कारीगरी से काम नहीं लिया गया। परन्तु उनमे वीरता का भाव है। उनको देखने से साहस, तेज और शोर्य का सहज ही आभास होता है। इन वीरों के मूर्तियो के साथ एक बात और है। उन राजाओं के जो प्रिय और विश्वासी सामन्त थे, उनकी मूर्तियाँ भी उनके साथ ही रखीं हैं। प्रत्येक सामन्त के हाथ में तलवार और ढाल है। उसकी पीठ पर धनुप-बाण और कटार लटक रही है। ये सभी मूर्तियाँ देखने में सुन्दर मालूम होती हैं। जिन शूरवीरों की ये प्रतिमायें हैं, उनकी शरीर का गठन कैसा था, इस बात को मैं नहीं जानता। सम्भव है, वे राजा और सामन्त इसी प्रकार सुगठित शरीर के रहे हों अथवा मूर्ति-निर्माताओ ने अपनी इच्छा से इन मूर्तियों को यथाशक्ति सुन्दर और आकर्षक बनाया हो। इसमे सही क्या है, मैं नहीं जानता। उस कमरे में प्रवेश करते ही सबसे पहले गणेश जी की मूर्ति दिखायी देती है। उस मूर्ति के पास रणदेव के दो पुत्रो की मूर्तियाँ है और वे गणेश जी की मूर्ति के दोनो तरफ स्थापित हैं। इन दोनो मूर्तियो में प्रत्येक का नाम भीरू है। गणेश जी की मूर्ति के आगे चण्डमण्ड और कङ्ककाली देवी की मूर्तियाँ हैं। काली देवी की मूर्ति भी वहाँ पर स्थापित है। वह मूर्ति भयङ्कर काली और उसका एक पैर महिपासुर की छाती पर और दूसरा पेर सिंह की पीठ पर है। काली देवी की मूर्ति अपने दोनो हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिये है। वहाँ पर कुछ और भी मूर्तियाँ है और उनमें एक मूर्ति राठौरों के गुरुदेव नाथ जी की है। नाथ जी के एक हाथ में माला और दूसरे हाथ मे धर्मदण्ड है। घोडे पर चढ़े हुए मल्लीनाथ की मूर्ति भी वहाँ पर दिखायी देती है। उसके एक हाथ में भाला है और तरकस घोड़े के पीछे लटक रहा है। उसकी स्त्री पद्मावती भोजन से भरे हुए पात्र को हाथ में लेकर मल्लीनाथ के युद्ध क्षेत्र से लौटने की प्रतीक्षा कर रही है। मल्लीनाथ जब युद्ध मे मारा जाता है तो उसकी पत्नी पद्मावती अपने पति के शव के साथ चिता में बैठकर जल जाती है। 399