उत्तर की तरफ मण्डोर से कुछ दूरी पर तन्हापीर का थान है। थान शब्द का अर्थ स्थान होता है। अजमेर मे ख्वाजा कुतुब की एक प्रसिद्ध मस्जिद है। तन्हापीर उमी कुतुव का शागिर्द था। राजस्थान मे बहुत दिनों से सिंधी और अफगानी लोग लुट मार करते आ रहे है। ये सभी लोग इसी पीर की मस्जिद में एकत्रित होते थे और राजस्थान के राज्यों मे आक्रमण करने का कार्यक्रम तैयार करते थे। मण्डोर के उत्तर की तरफ राठौर राजाओं और उनकी रानियो के स्मारक बने हुए है। परिहार राजपूत राजाओ के शव कहाँ पर जलाये जाते हैं और कहाँ पर उनके स्मारक बनाये गये थे, इसको मैं जान नहीं सका। इसके सम्बन्ध मे न तो इतिहास से कुछ पता चलता है और न कुछ जनश्रुति के द्वारा ही मालूम होता है। राजधानी के पूर्व और उत्तर-पूर्व की तरफ प्रकृति ने एक ऐसा वेरा बना दिया है, जो राजधानी के लिये किसी सुदृढ़ दुर्ग से कम नहीं है। वहाँ पर नगर के बहुत से लोग घूमने, विश्राम करने और प्राकृतिक शोभा का दर्शन करने के लिए प्राय: जाया करते हैं। हम लोग जिस रास्ते से होकर ऊपर चढ़कर गये थे, उसी रास्ते से होकर हम लोग पंचकुंड की तरफ आगे बढ़े। रास्ते में अनेक प्रकार के मनोहर दृश्य देखने को मिले। उनमे प्राचीन काल के बने हुए पुराने महलो के भी कुछ स्थान थे। उस मार्ग के नीचे के भाग मे दो सिहद्वार हैं। वहाँ अच्छे जल का एक जलाशय भी है। उन सिंहद्वारो में एक से होकर आगे चलने पर विस्तृत जंगल दिखायी देता है और वहाँ के लम्बे-चौडे मैदान में अनेक महल देखने को मिलते हैं। दूसरे सिंहद्वार से होकर चलने पर वह स्थान मिलता है, जहाँ पर मारवाड़ राज्य के शूरवीर राठौरो की प्रस्तर प्रतिमा स्थापित हैं। वहाँ के इन सभी रमणीक दृश्यो को देखकर मन मे अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं। मैं वहाँ पर कुछ देर के लिये रुककर कितनी ही बातों को सोचने लगा। मैंने वहाँ पर एक गुफा के भीतर मण्डोर के प्रसिद्ध राजा नाहरराव के स्मारक में बनी हुई एक वेदी को देखा। नाहरराव अरावली पर्वत के भयानक स्थान पर चौहानों के साथ युद्ध करते हुए मारा गया था। चन्द कवि वे नाहरराव की श्रेष्ठता और वीरता पर बहुत-सी कवितायें लिखी हैं और उन कविताओ मे कवि ने उसकी बड़ी प्रशसा की है। नाहरराव के स्मारक की देखभाल और उसके दूसरे कार्यो के लिये एक नाई रखा गया है। जो निरन्तर वहाँ पर रहकर अपना कार्य करता है। उस स्मारक का कोई भी कार्य नाई को क्यो सौपा गया, इसको मैं समझ नहीं सका। मैं इस प्रश्न को बड़ी देर तक सुलझाता रहा। इसके सबंध में जो उलझन मनोभावो मे थी, उसको सुलझाने के लिये मुझे कोई साधन नहीं मिला। इसलिये मुझे यह समझकर सन्तोप कर लेना पड़ा कि नाई लोग राजपूतों के यहाँ घरों का सभी कार्य करते हैं। कदाचित् इसीलिये इस स्मारक के कामों को करने के लिये नाई नियुक्त किया गया है। यह तो मेरे मस्तिष्क की उपज है। परन्तु इसका और कारण क्या है इसको न कोई जानता है और न मुझे कोई बताने वाला मिल सका। यहाँ पर एक मन्दिर बना हुआ है, इस मन्दिर मे नौ मूर्तियाँ हैं । यहाँ के लोगो का कहना है कि लका से आकर रावण ने मण्डोर के राजा की लड़की के साथ विवाह किया था। । 398
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