पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४१

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दूसरे दिन प्रातःकाल हात हा सब क साथ राजकुमार जाला नारा आगे जाने पर भाटी राजकुमार जेतसी के दाहिनी ओर तीतर के बोलने की आवाज सुनायी पड़ी। सांकला मीराज इस प्रकार की बातों का अर्थ समझता था। उसने दाहीने हाथ की तरफ तीतर का बोलना अपशकुन बताया। राजकुमार जेतसी ने अपशकुन की बात को सुनकर अपने घोड़े को रोका और सब के साथ उसने उस दिन वहीं पर विश्राम किया। वह तीतर पक्षी साथ के लोगों के द्वारा पकड़ लिया गया। उस समय मालूम हुआ कि उस तीतर के एक ही आँख है। दूसरे दिन प्रात:काल जेतसी सबके साथ फिर रवाना हुआ। कुछ दूर आगे जाने पर बाघिनी के गरजने की आवाज सुनायी पड़ी। जेतसी ने सॉकल मीराज से इसका अभिप्राय पूछा। उसने कोई बात स्पष्ट न कहकर जेतसी को सलाह दी कि आप सब लोग यहीं पर विश्राम करें और नाई को भेजकर कुम्भलमेर का समाचार मालूम कर लें जो आदमी भेजा जावे, वह आदमी वहाँ की परिस्थितियों का पता लगाकर आवे। इस परामर्श के अनुसार एक युवक नाई की स्त्री का भेप धारण करके कुम्भलमेर की तरफ रवाना हुआ। उसने वहाँ पहुँचकर किसी प्रकार रानियों के महलों में प्रवेश किया और उसने वहाँ से लौटकर जो वर्णन किया, उससे मालूम हुआ कि वहाँ का समाचार अच्छा नहीं है। यह सुनकर जेतसी ने उसकी बातों पर विश्वास किया और राणा कुम्भ से अप्रसन्न होकर उसने सॉकल की लडकी मारू के साथ विवाह कर लिया। राणा कुम्भ ने जब सुना कि भाटी राजकुमार जेतसी ने साँकल की लड़की के साथ विवाह कर लिया है, तो उसने अत्यधिक अपमान और क्रोध अनुभव किया परन्तु उसने शांति से काम लिया और गागरोन के प्रसिद्ध खींची राजा अचलदास के साथ अपनी लड़की का विवाह कर दिया। जेतसी विवाह के बाद सेना लेकर पूगल-राज्य पर अधिकार करने गया और अपने भाई लूनकर्ण तथा साले के साथ वहाँ के युद्ध में मारा गया। पूगल के राजा वृद्ध रनिगदेव को इसके पहले की परिस्थितियों का कुछ ज्ञान न था। उसके प्रायश्चित करने पर रावल केहर ने उसे क्षमा कर दिया। केहर के आठ बालक पैदा हुए-(1) सोम (2) लखमन (3) केलण (4) किलकर्ण (5) सातुल (6) बीजू (7) तन्नू और (8) तेजसी। सोम के बहुत सी संतानें पैदा हुई जो सोमभट्टी नाम से प्रसिद्ध हुई। केलण ने अपने बड़े भाई सोम से जबरदस्ती बीकमपुर छीन लिया और उस दशा मे सोम बसी लोगों के साथ गिरप नामक स्थान में जाकर रहने लगा। सातुल ने अपने नाम पर सातुलमेर राजधानी की प्रतिष्ठा की। x बसी लोगों के सम्बन्ध में पहले वर्णन किया जा चुका है । बसी नाम की वहाँ पर गुलामों की एक जाति थी। अपनी दरिद्रता और सभी प्रकार की असमर्थता के कारण जो लोग सदा के लिए अपनी स्वाधीनता बेच देते थे, वे लोग बसी कहलाते थे। उनका मालिक उनके सिर के बालों को चाँद के आकार में काट देता था। उनके गुलाम होने की यह पहचान थी। ये लोग पशुओं की भाति खरीदे और बेचे जाते थे। राजस्थान के अन्य राज्यों की अपेक्षा मरुभृमि के राज्यों में ये गुलाम अधिक पाये जाते थे। प्रत्येक बडा आदमी अपने अधिकार में इस प्रकार के गुलाम रखता था। गुलामों की सख्या उसके बडप्पन का परिचय देती थी। श्यामसिंह चम्पावल पोकर्ण के पास दो सौ गुलाम थे। ब्राह्मण, राजपूत और अन्य मभी जातियों के लोग गुलाम हो जाते थे। - 35