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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४२

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नागौर के राठौर राजा से अपने पिता का वदला लेने के लिये रनिगदेव के लड़कों ने जब इस्लाम धर्म स्वीकार किया तो ये पूगल और मेरोट के अधिकारो से वंचित हो गये और आभोरिया भाटी लोगों के साथ जाकर वे लोग मिल गये। उसके बाद वे लोग मोमन अर्थात् मुस्लिम भट्टी लोगों के नाम से विख्यात हुये। रावल केहर के तीसरे लड़के केलण ने पूगल और मेरोट के बाद वीकमपुर मे भी अपना अधिकार कर लिया और पदुमभट्टी लोगों की निर्वल अवस्था मे उसने देरावल नगर को छीन लिया। केलण ने अपने पिता के नाम से एक दुर्ग बनवाया। केरोर उसका नाम रखा। यहीं से जोहिया और लंगा लोगों के साथ भाटी लोगों का झगड़ा पैदा हुआ। लंगा लोगों के सरदार अमीर खाँ कुराई ने केलण पर आक्रमण किया। इस युद्ध मे अमीर खाँ की पराजय हुई। केलण से इन दिनों में चाहित्व, मोहिल और जोहिया लोग भयभीत रहते थे। केलण ने अपनी शक्तियां के द्वारा दूर-दूर तक ख्याति पायी थी और पंचनद तक उसने अपना विस्तार कर लिया था। इन्हीं दिनों में केलण ने समावंश की राजकुमारी के साथ विवाह किया। इसके बाद उस वश में सिंहासन का अधिकार प्राप्त करने के लिए घरेलू विद्रोह पैदा हुआ। केलण ने उस विद्रोह को शांत करने मे बड़ी सहायता की। उसने सुजाअतजाम नाम के समावंशी का पक्ष लिया था। दो वर्षों के बाद सुजाअत की मृत्यु हो गयी। उसके बाद केलण ने उस वंश के सम्पूर्ण राज्य पर अधिकार कर लिया। उसके राज्य का विस्तार सिंधु नदी तक पहुंच गया। वहत्तर वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हो गयी। केलण के परलोकवासी होने पर चाचकदेव उसके सिंहासन पर बैठा। भाटी लोगों का विस्तार इन दिनों में गाडा नदी के समीप तक पहुँच गया था। यह देखकर मुलतान के मुस्लिम राजा को बहुत असंतोप हुआ। परन्तु वह कुछ कर न सका। इसलिये चाचकदेव ने मेरोट में अपनी राजधानी कायम की और वह वहीं पर रहने लगा। इसके कुछ दिनों के पश्चात् मुलतान के राजा ने यदुवंशी लोगों पर आक्रमण करने का इरादा किया और इसके लिए उसने तैयारी आरम्भ कर दी। लंगा, जोहिया, खीची आदि जितनी भी जातियाँ भाटी लोगो से शत्रुता रखती थीं, सभी ने मिलकर एक शक्तिशाली संगठन किया। मुलतान का राजा उस सगठन का प्रधान था। इस संगठन के द्वारा होने वाले आक्रमण का समाचार चाचकदेव को मिला। उसने बड़ी सावधानी के साथ इस आने वाले संकट का सामना करने की तैयारी की। चाचकदेव मुलतान के राजा के साथ युद्ध करने के लिए अपने साथ सत्रह हजार अश्वारोही और चौदह हजार पैदल सेना को लेकर रवाना हुआ और व्यास नदी के पास पहुंचकर उसने मुकाम किया। इसके पश्चात् दोनों ओर की सेनाओं का सामना हुआ और युद्ध आरम्भ हो गया। इस सग्राम में मुलतानी फौज की पराजय हुई। वहाँ का राजा युद्ध-क्षेत्र से भाग गया। चाचकदेव ने शत्रुओं के शिविर में जाकर बहुत सा युद्ध का सामान लूटा, इसके बाद वह मेरोट मे लौट आया। मुलतान का राजा पराजित होने के बाद शांत होकर नहीं बैठा। वह युद्ध की तैयारी करता रहा। अपनी शक्तियों को उसने अधिक जोरदार बनाया। जो लोग भाटी जाति के विरोधी 36