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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४१५

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एक प्रसिद्ध शाखा मेड़ता प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध हुई और उस शाखा के राजपूत मैड़तियाँ राठौरों के नाम से विख्यात हुये। बादशाह शेरशाह के आक्रमण करने पर जयमल ने उसके साथ युद्ध नहीं किया। उसके इस अपराध पर उसके पिता मालदेव ने उसको मण्डोर से निकाल दिया था। उस दशा में जयमल ने मेवाड़ के राणा के यहाँ जाकर शरण ली। राणा ने उसको बड़े सम्मान के साथ अपने यहाँ आश्रय दिया और अपने राज्य का एक प्रदेश बदनोर उसके जीवन निर्वाह के लिये उसे दे दिया। जयमल मण्डोर से निकाला गया था। लेकिन राणा से उसको बदनोर का प्रदेश मिला, वह मण्डोर की अपेक्षा अधिक उपजाऊ और अनेक बातों में अच्छा था। राणा के इस उपकार का बदला जिस प्रकार जयमल ने दिया, उसका वर्णन पहले किया जा चुका है, यह घटना संक्षेप मे इस प्रकार है: बादशाह अकबर ने अपनी शक्तिशाली और विशाल सेना लेकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। उस समय जयमल ने उसके साथ भयानक युद्ध किया था। उस युद्ध में जयमल मारा गया था। लेकिन उसका शौर्य देखकर शत्रु ने आश्चर्य किया था और बादशाह की तरफ से शूरवीर जयमल का स्मारक बनवाया था। इतिहासकार अबुलफजल, हर्बर्ट और बर्नियार आदि विद्वान यात्रियो ने अपने ग्रन्थो में जयमल की बहुत प्रशंसा लिखी है। लार्ड हेस्टिंग्स उसका बड़ा प्रशंसक था। उसने जयमल की वीरता की बहुत सराहना की थी और जयमल के वंशज बदनोर के वर्तमान सामन्त से जयमल की बहादुरी के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा था। सचमुच जयमल इसी योग्य था। मेवाड़ के राणा ने उसको अपने यहाँ आश्रय देते हुए जो उसके साथ उपकार किया था। उसका बदला देते हुए जयमल राणा से मुक्त हुआ। लेकिन जिस चित्तौड़ के लिये युद्ध करते हुए जयमल बलिदान हुआ था, चित्तौड़ उससे कभी भी उऋण न हो सकेगा। मेड़ता नगर मे बहुत से सुदृढ़ बुर्ज बने हुए हैं और सम्पूर्ण नगर मजबूत पत्थरों के कोट से घिरा हुआ है। उसका पश्चिमी भाग मिट्टी से और पूर्व की तरफ का सम्पूर्ण हिस्सा मजबूत पत्थरों से बनाया गया है। इस नगर के अधिकाश भीतरी हिस्से टूटे-फूटे हैं। इस नगर में बीस हजार मनुष्यो के रहने के लिए घर है। यहाँ पर धनिकों के पक्के और मजबूत मकान और महलों के साथ-साथ गरीवों के कच्चे मकान और दरिद्रो की झोपड़ियां भी है। नगर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में दुर्ग बना हुआ है। उसकी लम्बाई दो मील से अधिक है। दुर्ग के पूर्व और पश्चिम की तरफ छोटे-छोटे तालाब हैं। नगर के भीतर बहुत से कुए हैं। लेकिन जल किसी का अच्छा नहीं है। मेडता के आस-पास दूधसार, वाइजपा, दुराणी और धनगोलिया इत्यादि कई बडे-बडे जलाशय हैं। मेडता के मैदानो मे बहुत-से स्मारक बने हुए है । जिन शूरवीर राजपूतो ने मराठों के आक्रमण करने पर अपनी स्वाधीनता की रक्षा करते हुए युद्ध किया था और अपने प्राणों की बलि दी थी, उन सबके इस विस्तृत मैदान मे स्मारक बने हुए है। किन परिस्थितियों मे राठौर राजपूतों की एकता नष्ट हुई थी, उनपर जिन परिस्थितियों में मराठो के आक्रमण हुये और आक्रमणकारी शत्रुओ ने मारवाड में प्रवेश किया एवम् जिन परिस्थितियों में मारवाड़ी 411