- राजपूतों की शक्तियाँ निर्बल पड़ीं, इतिहास की इन रोमांचकारी घटनाओं के स्मरण के साथ- साथ इन स्मारकों के दर्शन करना उचित मालूम होता है। राजा अजित सिंह के मारे जाने का वर्णन संक्षेप में पहले लिखा जा चुका है। दिल्ली मे सैयद बन्धुओं ने वादशाह फर्रुखसियर को सिंहासन से उतार कर दूसरों को उस पर विठाने का जो एक नाटक शुरू किया था, उन्हीं दिनों में सैयद बन्धुओं की कूटनीति के फलस्वरूप राजा अजित सिंह अपने ही एक लड़के के द्वारा मारा गया था। अजित सिंह मुगल दरवार में अपने लडके अभयसिंह को छोड कर अपनी लड़की के साथ राज्य की तरफ आ रहा था। मुगल दरवार में सैयद बन्धुओं के कारण एक बड़ी उथल-पुथल मची हुई थी। उस दरवार में सैयद वन्धुओं का प्रभाव था और वे मुगल सिंहासन पर उसी को बिठाने के पक्ष मे थे, जो सैयद बन्धुओं के हाथ की कठपुतली बन कर काम करना चाहता था। जो ऐसा नहीं कर सकता था, वह अधिकारी होते हुए भी दिल्ली के मुगल सिंहासन पर नहीं बैठ सकता था। उस दरबार में सैयद बन्धुओं का इतना अधिक प्रभाव था कि कोई भी उनका विरोध नहीं कर सकता था। साम्राज्य के सभी नवाव और राजा उनकी हाँ में हॉ मिलाते थे। परन्तु राजा अजित सिंह के सामने जव इस प्रकार का अनुचित और अयोग्य मसला पेश हुआ तो उसने बड़े साहस के साथ समर्थन करने से इनकार किया। सैयद बन्धुओ ने जब अजित सिंह का इस प्रकार विरोध देखा तो वे उसी समय से उसके शत्रु बन गये और उसके इस विरोध का निष्ठुर बदला लेने की उन्होंने तेयारी की। राजा अजित सिंह को सैयद वन्धुओ के विश्वासघात का कुछ पता न था। वह एक ईमानदार और स्वाभिमानी राजपूत था। किसी के पड्यंत्र का समर्थन करना वह अपना कर्त्तव्य न समझता था। उस समय सैयद बन्धुओं ने राजा अजित सिंह से कुछ न कहा। वह दिल्ली दरवार में अपने लड़के अनूपसिंह को छोडकर जेसा कि ऊपर लिखा गया है-राज्य मे चला गया। सैयद बन्धु अपने बढते क्रोध में अजित सिंह को उसके विरोध का तुरन्त बदला देना चाहते थे। इसलिये उन्होने अभय सिंह को बुलाकर कहाः “तुम अगर अजितसिंह को जान से मार डालो तो तुमको मारवाड़ के राज सिंहासन पर बिठाया जाएगा, अन्यथा मारवाड़ राज्य नष्ट कर दिया जाएगा।" अभयसिह ने सैयद बन्धुओ के मुख से इस आदेश को सुना। परन्तु अपने पिता अजित सिंह को मार डालने का उसमें साहस नहीं हुआ। उसने ऐसा करने से जब इनकार किया तो सैयद बन्धुओ ने उससे पूछाः "मॉ-बाप की शाखा अथवा भूमि की शाखा?" सैयद बन्धुओ ने अभयसिह से जो प्रश्न किया, उसका अर्थ यह है कि राजपूत लोग भूमि के अधिकार को सबसे अधिक महत्व देते हैं और उसके लिये वे भयानक कार्य भी कर सकते हैं। फिर तुम्हारे इनकार करने अथवा इस प्रकार का उत्तर देने का क्या अभिप्राय है। राजकुमार अभयसिह सैयद बन्धुओं के प्रभाव में आ गया। उसके मनोभावो मे मारवाड के राजसिंहासन का प्रलोभन पैदा हुआ। सैयद बन्धुओं के द्वारा कही गयी बात उसके दिल मे धीरे-धीरे घर करने लगी। मैं राजपूतो का प्रशसक हूँ। अनेक स्थानो पर मैंने राजपूतो के चरित्र की महानता को स्वीकार किया है। यहाँ पर किसी राजपूत के पतन को स्वीकार करते हुए मेरे - 412
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४१६
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