अपने वडे भाई के आदेश पर अपने पिता को धोखे से रात को सोते हुए जान से मार डाला था। नागौर प्रदेश का शासन अधिकार दे देने के लिये उसे बड़े भाई अभयसिंह ने लिखा था। लेकिन नागौर पाने का प्रलोभन ही बख्तसिंह के मनोभाव में न था। वह राजा अजितसिंह का एक प्यारा लड़का था और जव वख्तसिंह की माँ ने उससे सावधान रहने के लिए अजित सिंह को सचेत किया था, उस समय अजित को जरा भी विश्वास न हुआ था कि जो लड़का मुझसे पैदा हुआ है, वह विश्वासघात करके मुझे मार डालेगा। उसने सहज स्वभाव से अपनी रानी को उत्तर देते हुए कहा था: "क्या वह मेरा लड़का नहीं है?" राजा अजितसिंह के इन शब्दों में अपने लड़के के प्रति कितना वड़ा विश्वास था। फिर भी बख्तसिंह ने उस पर आक्रमण किया और सोते हुए उसको मार डाला। वख्तसिंह का चरित्र क्या था, इसको समझने के लिये यह घटना ही काफी है। रामसिंह अभयसिंह का लड़का था और अभय सिंह ने सैयद वन्धुओं के कहने से शूरवीर और प्रतापी राजा अजित सिंह को मरवा डाला था। अजित सिंह अभयसिंह और वख्तसिंह का पिता था। रामसिंह उसी अभयसिंह का लड़का था। जिसने बिना किसी कारण के ओर सेयद वन्धुओं के कहने से अपने जीवन का इतना वडा अपराध किया था। उस बीती हुई घटना के सम्बन्ध में यहाँ पर अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। अभिषेक में वख्तसिंह के न जाने और धाय के द्वारा उपहार भेजने एवम् इसके बदले में रामसिंह के द्वारा सन्देश भेजने के परिणामस्वरूप क्या हुआ, उसका वर्णन नीचे किया जाता है। रामसिंह मारवाड़ के राजसिंहासन पर बैठ चुका था। उसके व्यवहारों में शिष्टाचार का अभाव था। वह इस बात को भी न जानता था कि अपने अधीन सामन्तों के साथ मुझे कैसा व्यवहार करना चाहिये। मारवाड राज्य में जितने भी सामन्त थे, उनमें अहवा का सामन्त कुशलसिंह सवसे योग्य और प्रधान माना जाता था। वह चम्पावत वंश का था। उसका शरीर कद में छोटा लेकिन शक्तिशाली था। रामसिंह और उसके बीच साधारण वातों के सिलसिले में एक मनमुटाव पैदा हो गया। रामसिंह में दूसरों का उपहास करने की आदत थी। लेकिन उपहास करना उसे आता न था। इसलिये उसकी बातचीत सहज ही अप्रिय हो जाती थी। अपने इस स्वभाव के कारण रामसिंह ने एक बार कुशल सिंह को गुरजी कह कर सम्बोधित किया। गुरजी राजस्थानी भापा में कुत्ते को कहा जाता है। रामसिंह ने कुशलसिंह के लिये इस शब्द का प्रयोग केवल अपनी आदतों के कारण किया। उसको सुनकर सामन्त कुशलसिह ने तेजी के साथ उत्तर दिया-"यह गुरजी आक्रमण करके सिंह के टुकड़े-टुकड़े कर सकता है।" सामन्त का यह उत्तर रामसिंह को अच्छा न मालूम हुआ। लेकिन उस समय वह कुछ न बोला। परन्तु यहीं से दोनों के दिलो में अन्तर पड़ गया। इसके बाद उन दोनों के बीच एक घटना और घटी। दोनो एक दिन मण्डोर के जंगल में घूम रहे थे। वहाँ पर तरह-तरह के वृक्षो को देखते-देखते रामसिंह ने एक वृक्ष की तरफ संकेत करके कुशलसिंह से प्रश्न किया : "इस पेड का नाम क्या है?" जब मनोभावो मे किसी प्रकार का द्वेप होता है तो एक साधारण वात भी कडवी बनकर मनुष्य के मुख से निकलती है। सामन्त कुशलसिंह ने राजा रामसिंह के प्रश्न का उतर 14 417
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