का लाभ उठाकर अभयसिंह ने मुगल साम्राज्य के अनेक प्रदेशो को अधिकार मे लंकर मारवाड राज्य में मिला लिया। इसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी और उसके मरने पर उसका लड़का रामसिंह मारवाड के सिंहासन पर बैठा। बख्तसिंह उन दिनों में नागौर का शासक था और रामसिंह के अभिषेक समारोह का यहाँ पर उल्लेख करना जरूरी है, उससे राजपूतों की मनोवृत्ति का पता चलता है। रामसिंह वख्तसिंह का भतीजा था। इसलिये उसके अभिषेक के समय उसका आना आवश्यक था क्योंकि नागौर मारवाड़ राज्य का एक प्रदेश था और मारवाड़ के राजा की तरफ से बख्तसिंह को वहाँ के शासन का अधिकार मिला था। लेकिन रामसिंह के अभिपंक के समय बख्तसिंह स्वयं नहीं आया और उपहार की सभी चीजे उसने बृढी धाय के द्वारा भेज दी। उस अभिषेक में वख्तसिह के न आने का क्या कारण था, इसका कहीं पर स्पष्टीकरण नहीं हुआ। अभिपेक के समय जव नागौर की धाय उपहार लेकर उपस्थित हुई तो रामसिंह के हृदय को वहुत आवात पहुँचा। उसने नागौर से उपहार लाने वाली धाय से कहा :"इस अभिषेक में उपहार पहुंचाने के लिए चाचा साहब को क्या कोई दूसरा आदमी नहीं मिला था।" धाय से रामसिंह के भाव छिपे नहीं रहे । अपनी बात कहकर भी रामसिंह चुप नहीं रहा। उसने जरा भी शिष्टाचार का व्यवहार नहीं किया। अपने यहाँ से उसने उस धाय को वापस भेज दिया और वख्तसिंह के भेजे हुए उपहारों को भी उसने उसी के साथ लोटा दिया। रामसिंह ने यही नहीं किया, बल्कि उसने धाय के द्वारा वख्तसिंह के पास सन्देश भेजा। उस सन्देश में उसने कहा : "चाचा साहब जालोर का प्रदेश तुरन्त वापस कर दें मेरा यह आदेश है।" धाय लोटकर अपने साथ उपहार लिये हुए नागोर पहुंची तो उसने बख्तसिंह से सभी बातें कहीं। धाय का रामसिंह ने अपमान किया था। इसलिये उसने रामसिह के विरुद्ध कहने में कुछ वाकी न रखा और रामसिंह ने जालौर लौटाने के लिये जो सन्देश भेजा था, उसने वह भी वस्तसिंह से कहा। वख्तसिह को सन्देश सुनकर अच्छा नहीं मालूम हुआ। परन्तु उसने बुद्धिमानी से काम लिया और रामसिंह के सन्देश के उत्तर में उसने कहला भेजा :"जालौर और नागौर- दोनों प्रदेश आपके आदेश पर निर्भर है।" संक्षेप में वख्तसिंह ने इतना ही उत्तर भेजा। वस्तसिह को रामसिंह के अभिषेक में आना चाहिये था। उसके प्रदेश मारवाड़ राज्य के अन्तर्गत थे और सम्बन्ध मे वह रामसिंह का चाचा भी था। फिर वह क्यों नहीं गया, यह नहीं कहा जा सकता और न मारवाड के इतिहास में यह बात कहीं प्रकट होती है। परन्तु रामसिंह को बख्तसिंह का न आना किसी प्रकार वर्दाश्त नहीं हुआ इसलिये उसने जो कुछ किया और बख्तसिंह के पास जो सन्देश भेजा, वह ऊपर लिखा जा चुका है। अगर वख्तसिंह ने अपनी धाय को दृत बनाकर न भेजा होता और स्वयं उपस्थित न होने पर भी किसी सुयोग्य प्रतिनिधि को उसने भेजा होता, साथ ही उसने अपनी अनुपस्थिति का कारण रामसिंह को जाहिर किया होता तो बहुत सम्भव था कि रामसिंह को इस प्रकार का व्यवहार न करना पड़ता, जैसा कि उसने किया। प्रत्येक अवस्था में दोनों राजपूत थे और एक राजपूत इस प्रकार के अवसर पर जो कुछ कर सकता है, वख्तसिंह और रामसिह ने वही किया। यह वही बख्तसिह है, जिसने 416
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