और नया परिचय दिया। उसने सुना था कि सामन्त कुशलसिंह और कुन्नीराम-दोनों सामन्त राज दरवार से रूठकर चले गये हैं और वे हमारे विरुद्ध नागौर में तैयारी कर रहे हैं। उसे विश्वास हो गया कि इसमें नागौर के शासक बख्तसिंह का पड्यंत्र है। इसलिये उसने अपने चाचा वख्तसिंह को एक पत्र लिखकर भेजा कि आप फौरन जालौर का प्रदेश वापस कर दें। रामसिंह का यह पत्र वख्तसिंह को मिला। उसे उसने पढ़ा परन्तु उसे किसी प्रकार का क्रोध नहीं आया और उस पत्र का उत्तर देते हुए उसने रामसिंह को लिखकर भेजा-"मैं किसी भी परिस्थिति में अपने राजा के साथ विवाद बढ़ाने का साहस नहीं रखता। अगर आप यहाँ आ सकें तो मैं जल से भरा हुआ घड़ा लेकर आप से भेंट करूंगा।"* वस्तसिंह के टेढ़े वाक्यों और पत्रों से भी रामसिंह का क्रोध शान्त नहीं हुआ। वख्तसिंह जो नहीं चाहता था, वह परिस्थिति उसके सामने आकर खड़ी हो गयी। दोनों ओर से युद्ध के वाजे वजे और तेजी के साथ लड़ाई की तैयारी हुई। मेड़ता के विस्तृत मैदान में दोनों अपनी- अपनी सेनायें लेकर पहुंच गये। मारवाड़ के लोगों में मेड़ती राजपूत अधिक साहसी और शूरवीर समझे जाते हैं। वे सभी रामसिंह की सेना में जाकर एकत्रित हुये। रिया, वुदसु, मिथरी, खोलर, भरावर, अलनिवा, जुसुरी, वामरी, भुरुण्डा, दुरह और चन्दारुण के सामन्त अपनी सेनायें लेकर युद्ध के लिये रवाना हुये। जोधपुर के राजभक्त सामन्त अपनी-अपनी सेनाओं के साथ युद्ध क्षेत्र में दिखाई देने लगे। लाण्डू और निम्बी इत्यादि कुछ प्रदेशों के सामन्त विरोधी पक्ष में जाकर मिल गये। लेकिन खैरोवा, गोविन्दगढ़ और भाद्राजुन जैसे प्रदेशो के प्रसिद्ध सामन्त राजा के प्रति अपने कर्त्तव्य को न भूले। उन्होंने राज्य का नमक खाया था। इसलिये उससे उद्धार होने के लिये उन सामन्तों ने निश्चय किया। कुछ सामन्तों ने आपसी युद्ध में शामिल होना उचित न समझ कर तटस्थ रहने का निर्णय किया। रामसिंह अपने साथ पाँच हजार शूरवीर राजपूतों को लेकर में पहुंचा था। उसका विवाह राजा भोज की लड़की के साथ हुआ था। इसलिये राजा भोज की तरफ से पाँच हजार सैनिकों की एक सेना युद्ध में रामसिंह की सहायता के लिये आयी थी। उस सेना ने राजधानी के बाहर मुकाम किया। वहाँ पर भोजपुरी राजपूतों के जो खेमे लगे थे और जिसमें रामसिंह की रानी स्वयं मौजूद थी,उसके ऊपर एक कौवा आकर बोलने लगा। उसका बोलना रानी के विश्वास के अनुसार अपशकुन का सूचक था। इस प्रकार के अपशकुन की शान्ति का उपाय भी वह जानती थी। रानी ने हाथ में वन्दूक लेकर उस कौवे को मार कर गिरा दिया। रामसिंह अपने दूरवर्ती खेमे में बैठा हुआ था। वह स्वभावतः क्रोधी था। उसने अचानक बन्दूक की आवाज सुनी। उसे क्रोध आ गया और वन्दूक की उस फायरिंग को उसने अपना अपमान समझा। इसलिये उसने आवेश के साथ आदेश किया कि जिसने बन्दूक की यह आवाज की है, उसे पकड़ कर मेरे सामने ले आओ। उसके आदेश को सुनकर उसके नौकर उठे और उन लोगों ने बडी नम्रता के साथ उससे कहा: महाराज बन्दूक की फायरिंग करने वाला और कोई नहीं है। स्वयं रानी साहिवा ने अपनी बन्दूक से यह फायरिंग की है। मीथियन लोगों में राज्याभिषेक के समय जल से भरे हुए कलश को लेकर जाने की प्रथा है। बख्तसिह के उत्तर में उसी प्रथा की समानता जाहिर होती है। 419
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४२३
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