ओर से युद्ध ने भयंकर रूप धारण किया। बहुत से सैनिक जान से मारे गये और बड़ी संख्या में दोनों पक्षो के लोग घायल होकर गिर गये। परन्तु किसी पक्ष की सेना ने पीछे हटने का इरादा नहीं किया। बख्तसिंह की सेना बड़ी थी। इसलिए वह शत्रुओं में जिस तरफ रामसिंह को देखता, उसी तरफ आगे बढ़कर वह उस पर आक्रमण करने की कोशिश करता। इस युद्ध में मेड़तीय सैनिकों ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया और जब तक वे सव के सव मारे नहीं गये, बख्तसिंह को उन्होने आगे नहीं बढ़ने दिया। रामसिंह के पक्ष में सैनिकों की संख्या कम थी। मेडतीय वीरों के मारे जाने पर रामसिंह का पक्ष निर्बल हो गया। इस दशा में बखतसिंह की सेनायें आगे बढ़ी। रामसिंह की सेनायें अपनी बढती हुई निर्वलता में पीछे की तरफ हटने लगी। मिथरी के सामन्त का अधिकारी युद्ध करते हुए मारा गया। वहाँ का सामन्त युद्ध करते हुए अपने लड़के के साथ बलिदान हुआ। मिथरी के सामन्त के पुत्र की घटना अत्यन्त रोमांचकारी है। इसलिए यहाँ पर संक्षेप में उसको हम लिखने का प्रयास करते है। मेड़ता के मैदानों में होने वाले इस युद्ध में बहुत पहले मिथरी के सामन्त के इसी लडके का जयपुर राज्य के निरूमा के सामन्त की लड़की के साथ विवाह निश्चित हुआ था। इस युद्ध के दिनों में मिथरी-सामन्त का लड़का अपना विवाह करने के लिए निरूमा गया था, जिस समय उसका विवाह संस्कार हो गया था, उसने सुना कि शत्रुओ की सेनाय युद्ध में बढ़ रही है, इसी समय हाथ में बंधे हुए कंकण को खोलकर वह बाहर निकला और घोड़े पर बैठकर वह युद्ध के लिए मेड़ता की तरफ रवाना हुआ। उस समय में रामसिंह का पक्ष निर्बल पड रहा था। मिथरी के सामन्त का लड़का वहाँ पहुँच गया और उसने शत्रुओ के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया। उस दिन युद्ध में उसने अपने असीम पौरुप का परिचय दिया। परन्तु दूसरे दिन युद्ध करते हुए वह मारा गया। मारवाड़ के कवियो ने मिथरी सामन्त के उत्तराधिकारी की वीरता का वर्णन अपनी बहुत-सी कविताओ में किया है। विवाह-मण्डप के नीचे से मिथरी के सामन्त कुमार के चले आने पर निरूमा के सामन्त की नवविवाहिता कुमारी भी अपने नगर से रवाना हुई। लेकिन युद्ध स्थल पर पहुंचते ही उसे मालूम हुआ कि उसका पति मारा गया है तो उसी समय उसने चिता बनवाई और अपने पति के शव को लेकर वह सती हो गयी। जिस स्थान पर यह युद्ध हुआ था, वहाँ जाकर मैंने उस सामन्त के लडके का स्मारक खोजा परन्तु वहाँ पर मुझे उसका कोई स्मारक देखने को नहीं मिला। मेड़ता के इस युद्ध में रामसिंह के पक्ष की सेनाओं ने बहुत समय तक युद्ध करके अपनी बहादुरी का परिचय दिया। लेकिन अंत मे उनकी पराजय हुई और उसके पक्ष के लोगों ने मंजूर किया कि शत्रुओं के गोलों की वर्षा से हमारी हार हुई है। राजभक्त सामन्त शेरसिह ने अपने साले अहवा के सामन्त को बहुत समझाया था कि तुम रामसिंह के विरुद्ध युद्ध में न जाओ। परन्तु उसकी बात को अहवा के सामन्त ने किसी प्रकार नहीं माना। इस दशा में शेरसिंह ने आदेश के साथ अपने साले से कहा थाः "अच्छी बात है। बख्तसिंह का पक्ष लेकर रामसिंह को परास्त करने में तुम अपनी शक्ति को उठा न रखना।" 422
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