पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४३

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थे, उनका संगठन उसने फिर किया और दूसरे वर्ष अपनी शक्तिशाली सेना लेकर मुलतान से रवाना हुआ। चाचक देव ने अपनी सेना के साथ चलकर उसके साथ युद्ध आरम्भ किया। इस लड़ाई में सात सौ चवालिस भाटी और तीन हजार मुलतानी सैनिक मारे गये। चाचकदेव ने दूसरी बार फिर मुलतान के राजा को पराजित किया और इस विजय से उसके राज्य का विस्तार अधिक हो गया। उसने कई नगरों पर अधिकार कर लिया और असनीकोट नामक दुर्ग में अपनी एक सेना रखकर उसका अधिकार अपने लड़के को सौंपा। इसके बाद वह पूगल चला आया। इसके कुछ दिनों के बाद चाचकदेव ने दूदी के राजा महिपाल पर आक्रमण किया और उसे पराजित किया। वहाँ से लौटकर जैसलमेर में उसने अपने भाई लखमन से भेंट की और जो सम्पत्ति वह लूटकर लाया था, उसके द्वारा उसने जैसलमेर मे कई निर्माण के कार्य किये। इन्हीं दिनो मे जंजराम नाम के एक आदमी ने उससे भेंट की। आदमी बकरियों और भेड़ों को पालने का काम करता था। वरजांग नाम का एक राठौर लुटेरा उसके यहाँ पहुँचकर प्रायः भेड़ों और बकरियों को चुरा ले जाता था। अपने इस विपद के लिए उसने चाचकदेव से प्रार्थना की और अनेक वकरों और भैंसो को उसे भेंट में दिया। जजराज स्वयं नेक साहसी था। उसने प्रसिद्ध व्यावसायिक नगर सातुलमेर पर अधिकार कर लिया था। वरजांग ने अपने अत्याचारो से मरुभूमि के रहने वालों को भयभीत कर रखा था। रावल चाचकदेव ने जंजराज को संतोप देने की चेष्टा की और विश्वास दिलाया कि यदि बरजाग अव फिर तुम्हारे साथ किसी प्रकार का अत्याचार करेगा तो मैं उसे दण्ड दूंगा। इसके बाद कुछ दिन बीत गये। चाचकदेव एक वार जंजराज के गाँव में पहुंचा। उस समय जंजराज ने वरजांग के अत्याचारों का फिर से वर्णन किया। उनको सुनकर चाचकदेव ने वरजांग को दमन करने का निर्णय किया। उसने सीता जाति के राजा सूमर खॉ के साथ मित्रता की। सूमर खाँ अपने तीन हजार अश्वारोही सैनिकों को लेकर चाचकदेव के पास आया। उस लुटेरे राठौर का नियम यह था कि जहाँ पर वे लूट करने के लिए जाते थे, वहाँ नगर से बाहर छिपकर वे इस बात को समझने की चेष्टा करते थे कि नगर के विशेप लोग कब वाहर जाते हैं। चाचकदेव ने बरजांग के विरुद्ध एक योजना बना डाली और जो लोग बरजांग की लूट मे सहायक होते थे, उन सबको चाचकदेव ने कैद करवा दिया। बरजाग के साथ-साथ बहुत से महाजन लोग भी कैद किये गये। उन लोगों ने धन देकर अपने छुटकारे के लिए चेष्टा की। परन्तु चाचकदेव ने ऐसा नहीं किया और उसने उन महाजनों से कहा यदि तुम लोग उस नगर को छोडकर और अपने परिवार के लोगों को लेकर जेसलमेर में जाकर रह सको तो तुमको इस कैद से छुटकारा मिल सकता है। चाचकदेव की इस बात को सुनकर वहाँ के तीन सौ पैंसठ महाजन अपनी सम्पत्ति और सामग्री लेकर जैसलमेर चले गये और वहीं पर रहने लगे। वरजांग के तीन लडके कैद किये गये थे। चाचकदेव ने उसके सबसे छोटे और मझले बेटे को छोड़ दिया। परन्तु उसके बड़े बेटे मेरा को नहीं छोडा। चाचकदेव ने इन्हीं दिनों 37