रायसिंह के अचानक जैसलमेर की राजधानी में आ जाने से वहाँ के लोगों में एक कौतूहल पैदा हुआ और प्रत्येक मनुष्य उसको देखने के लिए लालायित हो उठा। रावल मूलराज को जब मालूम हुआ तो उसने अपने दूत से पूछा- "रायसिंह जैसलमेर क्यों आया है?" दूत ने रायसिंह के पास जाकर इस बात को जानने की कोशिश की। उसने दूत के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- "मैं तीर्थ यात्रा करने जा रहा हूँ। इसलिए अपनी जन्म भूमि को देखने आया हूँ।" दूत ने जब मूलराज के पास जाकर यह बात कही तो उसने रायसिंह की इस बात पर विश्वास नही किया। उसको इस बात की शका होने लगी कि रायसिंह अपने किसी पड्यंत्र के लिए यहाँ पर आया है। इसलिए मूलराज ने रायसिह के साथियों के अस्त्र-शस्त्र ले लेने का आदेश दिया और रायसिंह को देवा के दुर्ग में रहने के लिए भेज दिया। मंत्री स्वरूप सिह रायसिंह के द्वारा मारा गया था। इसलिए मूलराज ने राज्य की पुरानी प्रथा के अनुसार उसके बेटे सालिम सिह को मंत्री बनाया। स्वरूप सिंह के मारे जाने के समय सालिम सिंह की आयु ग्यारह वर्ष की थी। उस छोटी अवस्था में ही सालिम सिंह के मनोभावो मे प्रतिहिंसा की भावना पैदा हो गयी थी। जैसलमेर राज्य में जो लोग उसके पिता के विरोधी रहे थे, सालिमसिंह उनके और उनके परिवार के लोगो के साथ कटु व्यवहार कर रहा था। उसका शरीर और स्वभाव देखने में प्रिय मालूम होता था। परन्तु हदय उसका बहुत कठोर था। मंत्री होने के कारण राज्य में उसे सभी प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। परन्तु वह लोगो के साथ ऐसा व्यवहार न करना चाहता था, जिससे लोग उसको असम्मान की दृष्टि से देखते। अपने पिता की तरह सालिम सिंह भी जैन धर्मावलम्बी था। लेकिन उसके स्वभाव की क्रूरता पर जैन धर्म का कोई प्रभाव न पड़ा था। जैनधर्म के अनुसार रात्रि के अधंकार में रहना अच्छा है। परन्तु पतंगों और दूसरे कीड़ों के जलने के डर से दीपक जलाना धर्म के विरुद्ध है। सालिम सिह उस धर्म के इस प्रकार के सिद्धान्तों को मानता था। परन्तु मनुष्य के साथ अप्रिय और क्रूर व्यवहार करके उसको दुःख तथा पीड़ा पहुंचाने में कभी संकोच न करता था। सालिम सिंह जन्म से जैन धर्मावलम्बी था। परन्तु उसके कार्य बिल्कुल राक्षसों के से थे। जैसलमेर राज्य मे बाहरी जातियो के आक्रमण से भाटी लोगो का उतना संहार न हुआ। जितना सर्वनाश सालिम सिह के थोड़े दिनों के मंत्रित्व काल में इस राज्य के लोगों का हुआ। रायसिंह के निर्वासन के समय जो सामन्त उसके साथ राज्य छोड़कर चले गये थे, वे लौटकर फिर अपने नगरो मे आ गये। इन्ही दिनो में मारवाड के राजा विजय सिंह की मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर भीमसिंह सिंहासन पर बैठा। अभिषेक के दिन जैसलमेर के रावल मूलराज ने अपने यहाँ से प्रतिनिधि बनाकर मत्री सालिम, सिंह को वहाँ भेजा। सालिम सिंह मारवाड़ के अभिपेक से लौट कर जब जैसलमेर आ रहा था, मार्ग में राज्य के सामन्तों ने उसे पकड कर कैद कर लिया और उसको मार डालने की चेष्टा की। उस समय घबराकर सालिम सिह रो उठा और उसने अपनी पगडी जोरावर सिंह के चरणों पर रख कर अपने प्राणों की भिक्षा मांगी। इस अवस्था में उन सामन्तो ने उसको छोड दिया। जिस स्त्री ने कारागार से मूलराज को निकालने के लिए 48
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