पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/७२

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मरुभूमि का इतिहास मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मन्डोर मरुभूमि मे मन्डोर से आगे जाने का मुझे अवसर नहीं मिला। मन्डोर नगर मरुभूमि की पुरानी राजधानी है। हिसार का प्राचीन दुर्ग इसके उत्तर पश्चिम में है और आबू नहरवाला एवं भुज दक्षिण में है। मरुभूमि का वर्णन करने से पहले मैं इस बात को स्पष्ट कर देना आवश्यक समझता हूँ कि अनुसंधान करने वाली मेरी समिति ने प्रत्येक दिशा में पहुंचकर उसकी ऐतिहासिक सामग्री को प्राप्त करने की चेष्टा की है और इस कार्य में जो चीजें प्राप्त हुई हैं, उनमें आवश्यक सामग्री का अभाव न था, फिर भी बड़े परिश्रम के साथ मैंने तैयार करके जो कुछ पाठकों के सामने उपस्थित किया है, वह काफी नहीं है। मैं समझता हूँ कि भविष्य में जो विद्वान इसके सम्बन्ध में खोज का कार्य करेगे, मेरी यह सामग्री उनके लिए सहायक सिद्ध हो सकेगी। इस कार्य के सम्बन्ध में यात्रा के दिनों में मिली हुई सामग्री का मैंने पूरा भर लाभ उठाया है।* यद्यपि उससे ऐतिहासिक तथ्य निकालने का कार्य सरल न था, फिर भी मैंने अपने प्रयत्न में कुछ वाकी नहीं रखा। इस सामग्री के साथ-साथ भटनेर से अमरकोट से आरोर तक के ऐसे बहुत से निवासी मेरी समिति के द्वारा मेरे पास आये है, जिन्होंने अपनी जानकारी से मेरी बड़ी सहायता की है। इतना सब होने पर भी मैं इसे स्वीकार करता हूँ कि इस विषय में जो कुछ उपस्थित कर रहा हूँ, पर्याप्त नहीं है। मुझे केवल इतना संतोप है कि मेरे इस कार्य से अभाव के दिनो में लोगों को बहुत कुछ सहायता मिल सकेगी। ऊपर लिखी हुई बातों को स्पष्ट करने के बाद मैंने मरुभूमि का वर्णन विस्तार के साथ लिखने का प्रयत्न किया है। यद्यपि मैं जानता हूँ कि यदि इस कार्य में मेरे साथ कुछ अभाव न होते तो यहाँ पर जो मैंने वर्णन किया है, वह इस पुस्तक के भूगोल सम्बन्धी वर्णन में सम्मिलित कर दिया जाता। कुछ लोगों की दृष्टि में यह वर्णन ऐतिहासिक महत्व न रखे यह सम्भव हो सकता है। परन्तु यहाँ की मरुभूमि की जानकारी के सम्बन्ध में इसका एक विशेष और आबू मध्य और पश्चिमी भारत के साथ-साथ इस देश के दूसरे मार्गो के सम्बन्ध में जो पुस्तके मुझे मिली हैं, वे ग्यारह भागों में विभाजित हैं। उनकी सहायता से यहाँ के राज्यों के मार्गों पर प्रामाणिक नक्शे तैयार किये जा सकते हैं। ऐसा करने का मेरा इरादा भी था। परन्तु लगातार बिगड़ने वाला मेरा स्वास्थ्य मेरे इस कार्य में बाधक हुआ है। इसलिए जो पुस्तके इस विषय मे मुझे प्राप्त हुई हैं वे अब कम्पनी के दफ्तर में रख दी गयी हैं। यदि बुद्धिमानी और परिश्रम से काम लिया गया तो भारत का प्रामाणिक नक्शा तैयार करने मे इन पुस्तकों से बहुत बडी सहायता मिलेगी। 66